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लेइ ऊवी धूतण तेह, भूपतिनी लेइ शीख सनेह ॥ ॥ सा० ॥ पोहोती तात तणे श्रागार, गइ एकथंने सुरं ग मकार ॥ सा० ॥ १४ ॥ उतारयो धसमसी योगण वेष, मूलवस्त्र पहिया सुविशेष ॥ सा० ॥ पोढी हींगोले खाट तिवार, हवे नृप पण आव्यो वार ॥ सा० ॥ १५ ॥ यंत्र खोली नृप गेह मजार, श्राव्यो दीवी पोढी नार ॥ सा० ॥ अचरज मनमां पामे नूप, रूप कला देखीने अनूप ॥ सा० ॥ १६ ॥ ए तो बिचारी अबला बाल, सूर्ति दिसे वे सेज विचाल ॥ सा० ॥ एहने उकले किहांथी उपाय, जे मुऊने ए लगाडे पाय ॥ सा० ॥ १७ ॥ जोलो राय न जाणे नेद, मानवती जे पूरशे उमेद ॥ सा० ॥ ए उगणीशमी रूमी ढाल, मोहन विजयें कही रसाल ॥ सा० ॥ १८ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ भूपें मानवती जणी, जई जगामी जाम ॥ ऊ वी जबकी सेजथी, कर जोमी रहि ताम ॥ १ ॥ उलं जो अवनीशने, नारी कहे धरि नेह ॥ खामी केम करुणा करी, मुऊ बलाने गेह ॥ २ ॥ शुं तमें मूला श्राविया, धसमसि मंदिरमां हि ॥ माहारा सम साचुं कहो, एम कहि काली बांहि ॥ ३॥ नाह कहे ताहरी
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