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(५५) ॥स०॥ एकांते सघलो कह्यो रे ॥ सेठे रहस्यविचार ॥ स ॥ ए ॥ बाहिर वात म काढसो रे ॥ तमने करसुंप्रसन्न ॥ स ॥ कारीगर तत्पर थया रे ॥ज्य नुं जाणी मन्न ॥ स ॥१०॥केतेक मासे पाधरी रे॥ सुरंग विनाश तत्र ॥ स०॥ मानवती एकाकिनी रे॥ नित्य निवसे डे यत्र ॥ स ॥१॥ गूढ उघाड्यो बार | रे ॥ एकथंने आवास ॥ स ॥ छार निहाली वियोगणी रे ॥पामी अतिहि उदास ॥ स॥१२॥ कारीगरे जईवीनव्यु रे ॥साहनणी तेणीवार॥स॥ वचन निवाहो राउला रे ॥ सुरंग कीध तश्यार ॥ स ॥ १३ ॥ बहुधन आपी तेहने रे ॥ शेठे कीध विदाय॥स ॥ नारी थकी तुमें जोय जो रे ॥ स्यो कीधो बे उपाय ॥ स ॥ १४ ॥ मानवती गृह तातने रे ॥ श्रावी थश्ने सुरंग ॥ स ॥ प्रणम्या मात पिताजणी रे ॥ हियडे धरी उबरंग ॥ स ॥ १५ ॥ चतुरा चरित्र निहालजो रे ॥ सहुको बाल गोपाल ॥स०॥ मोहन विजयें कही नली रे ॥ एतो सत्तरमी ढाल ॥ स ॥ १६ ॥
॥दोहा॥ ॥ मातपिताने पागले, मानवतीयें ताम ॥ नृप
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