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________________ (१२७) तणा अडे, द्वितीय एह व्रत सार रे ॥ जि० ॥ १३ ॥ बीजा व्रतथी रे पण केश तस्या, पाम्या मुगतीनोगम रे॥ गुरुना मुखथकी वचन सुणी इस्या, वीनवे नर पति ताम रे ॥ जि० ॥ १४ ॥ स्वामी तारो रे मुजने वैरागरंगनी, बेतालीशमी ढालरे ॥ जि ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥राज्य समी पुत्रने, मानतुंग महिपाल ॥ सुंदरी साथे संचरी, थयो दीदा उजमाल ॥१॥ मानवती नृपतिसहित, परिहरे राज्य तिवार ॥ चरण ग्रहे मुनिवरकने, जाणी अथिर संसार ॥ २॥ पंच महाबत परगमा, पाले निरतीचार॥ विनयादिक सवि अन्यसे, करता उग्रविहार ॥३॥ मानतुंग मुनिवर थयो, छादशअंगी जाण ॥ मानवती साधवी नली, संयम वहे सुजाण ॥४॥ पंचमहावतने उन्नय, नवि ह लगाडे दोष ॥ शत्रु मित्र सरखा गणे, धरे सदा संतोष ॥ ५॥ पागंतरे ॥ सत्तर नेद संयमतणा ॥ पाले विरती चोख ॥ शत्रु मित्र सरिखा गणे, धरे दास संतोष ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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