SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७५) ल ॥ मोहन विजयें वरणवी रे, एह वीसमी ढाल रे॥ यो ॥ 3 ॥ १७ ॥ ॥दोहा ॥ ॥ नृप आतुर जाणी करि, सामणि बोली ताम ॥ रे बंदे नारान्यके, क्यों कलपत हे श्राम ॥ १॥ दे खन तेरा पारखा, इतना किया विलास धन्य धन्य तेरी मातकुं, तोकुं हे साबास ॥२॥ दलथंजनकी पुत्रीसें, कर विवाह मनरंग॥कहे तो में साथे चढुं, वीणा लेई संग ॥३॥ तूं ददणकुं ऊठ चले, हम रहे इहां कुणकाज ॥ जित तूं तित हमही चले, म कर फिकर महाराज ॥४॥ राजा अतिहर्षित थयो. सामणनो लहि हेज॥ जिम हरखे निझाबुर्ज, पामी सुंदर सेज ॥ ५॥ हारेल जेम वाहन मले, नूख्याने जिम अन्न ॥ तिम योगण वचनें थयो, नवपल्लव नृप मन्न॥६॥योगिणनुं मन थिर थयु, देखीने नूपाल ॥ दलनणना सचिवने, तेमाव्यो ततकाल ॥ ७॥ ॥ ढाल सत्तावीशमी ॥ ॥ जगजीवन जगवालहो ॥ ए देशी॥ ॥ तेह सचिव कहे रायने, ढील किसी करे राय ॥ लाल रे ॥ चालो जी पंथ डे वेगलो, आवे जो तुमचे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy