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________________ (१००) ॥ दोहा॥ ॥ पोहोतो प्रेष्य अनुक्रमे, मानतुंग नृपपास ॥ करी प्रणाम कागल तुरत, दीधो धरि उदास ॥१॥ वाच्यो कागल खोलिने, प्रियो सवि वरतंत ॥ मानव तीकेरी कथा, वांचत चमक्यो चित्त ॥५॥ युवती यें ए शी लिखी, मानवतीनी वात ॥ में तो मानवती घरे, यंत्र जड्या ने सात ॥३॥ एतो कौतुक वातमी, ए किम मानी जाय ॥ किणहिक शोकें वेधथी, होसे लिख्यो बनाय ॥४॥ जिहां कीमी नवि संचरे, जिहां नही पवन प्रगटन ॥ तेहवे गेहे रहे थके, गोरी किम धरे गर्न ॥५॥ एहवे वलि बीजो तिमज, कागल श्राव्यो जत्त॥मानवतीनी वात तव, चोकस बेठी चित्त ॥६॥ ॥ ढाल सामंत्रीशमी ॥ ॥ दक्षिण दोहिलो हो राज, दक्षिण ॥ दक्षिण दोहिलो रे, बुजापाणी लागणो ॥ ए देशी ॥ ॥ नृपति विचारे हो लाल, ए सवि साचुं राज ॥ कागल कूडो रे राणी मांने नालिखे ॥ १॥ में तो ए नारी हो लाल, असती न जाणी राज ॥ खीच मी वखाणी रे ए तो लागी दांतडे ॥२॥ धिग धिग एहने हो लाल, एह सुं कीg राज ॥ कीg एणे रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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