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कृत्वा रक्षां निरामयाम् I. 62. 18d
राक्षसपुंगवः VI. 36.21b राघवशासनम् VII. 44.5b
रात्रिमुवासह I. 69.18f राममुपागमन् II.105.2d
रामं च तापसम् II. 73.3d
रामं प्रदक्षिणम् I. 1. 78b
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मनोगतम् VII. 96.1od
वनेचरम् II. 14.22b
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रामः प्रदक्षिणम् II 19.31b
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रूपमनुत्तमम् I. 64.8b रूपाण्यनेकशः I. 26.1gb
लंकारमात्मनः II. 40. 13d वचनशुश्रूषाम् III. 10.8a
वसुमतीं राम I. 43. Ic
वासस्य नियमम् VII. 104.220
विकोशं नित्रिंशम् VI. 81. 14c विक्रममुत्तमम् VII. 19. rsd वितिमिरं सर्वम् IV. 42.500
VII. 21.9c
विप्रियमीदृशम् II. 12.68b
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वेगं च दुःसहम् I. 43.4d गमनुत्तमम् VI. 56.2gb वैरमनुत्तमम् II. 21.15b
वैवायमुत्तमम् I. 73.12d
व्रतमनुत्तमम् I. 65.2b
शापसमायुक्तान् I 62.18a
V. 51.42d VI. 59.127b
शिरसि चाञ्जलिम् V. 6238b
भामिनी II. 25.37b
स कपिकुञ्जरः V. 1. 36b संकुलितेन्द्रियः II. 67.2b
संनिचयान्बहून् II. 3.44d
स. प्राद्रवच्छरैः VII. 29.26d
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कृत्वा समयमुत्तमम् I. 37.24b
सर्व प्रदक्षिणम् II. 79.6b
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" सलिलमुत्तमम् I. 44.17b सुखमवाप्नुयात् V. 51.20d कृत्वासौ प्रामुखा ययौ II. 71.2b कृत्वा सौमित्रिणा सह III. 13.14b
स्त्रीरूपमात्मानम् VII. 87. 12a
स्वर्गे महीयते II. 118.1ob कृत्वाह्निकमरिंदमः VII. 82.5b कृत्वैतत्कार्मुकं राज्यम् IV. II.gra कृत्वैवमुदकं तस्मै III. 69. Ja कृत्वोदकं ते भरतेन सार्धम् II. 76.23a कृत्स्नं तत्र महद्वनम् IV. 48.13d तद्भवोत्तमम् III. 55.13b त्यतिकार्यमेतत् IV. 24.23a
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तु नगरं तत्तु IV. 127.22a निवेदयामासुः VI. 51. IIc कृत्स्नमाश्रममण्डलम् III. 8.6b कृत्स्नं परिवृतं लोकम् V. 49.120 मधुवनं चैव V. 63.12c कृत्स्नः समुपवर्तते II. rog.gb कृत्स्नाद्भयाज्जातिभयम् VI. 16.8c कृत्स्ना संवादिता भूमि: IV. 39 IOC कृत्स्नेयं यत्कृते लङ्का VI. 45.15a कृत्स्नं रामायणं काव्यम् I. 2.410
VII. 93.4C
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कृपणं च स्थितं बाल्ये II. 21. rge
हनूमन्तम् VI. 9.60 पर्यदेवयन् II. 66.17d
बत वैदेही II. 1272c
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लोकस्य महन: IV. 64.30
वनमिदं दृष्टम् III. 14.28a व्याप्तमिदं जगत् II. 74.25b
हि पतिम् VI. 41.9Sa सर्व कुपितं जगत्स्यात् II. 12. 192
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