Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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बौद्धन्याय और गौतमीय न्याय में हेत्वाभासों का स्वरूप
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धर्मकीर्ति के अनुसार उक्त इष्टविधानकृत् पृथक् हेत्वाभास नहीं है । क्योंकि उक्त साध्य और इष्ट साध्य दोनों समान ही हैं। अतः चाहे साध्य वचन द्वारा उक्त हो अथवा इष्ट हो, यदि वहाँ साध्य विपर्यय की सिद्धि होती है तो वह सब विरुद्ध हेत्वाभास ही है। उसके पृथक् नामकरण की कोई आवश्यकता नहीं है ।
गौतमीय न्याय में हेत्वाभास का स्वरूप तथा भेद हेत्वाभास का स्वरूप
हेतु का लक्षण न पाये जाने के कारण जो अहेतु हैं किन्तु हेतु के समान होने के कारण हेतु जैसे मालूम पड़ते हैं वे हेत्वाभास कहलाते हैं ।' अहेतुओं की हेतुओं के साथ समानता यह हैं कि जिस प्रकार हेतु प्रतिज्ञा के अनन्तर प्रयुक्त होते हैं उसी प्रकार हेत्वाभास भी प्रतिज्ञा के अनन्तर प्रयुक्त होते हैं । हेत्वाभास के भेद
न्यायदर्शन में हेत्वाभास के ५ भेद है-सव्यभिचार, विरुद्ध, प्रकरणसम, साध्यसम और कालातीत ।
सव्यभिचार-मनैकान्तिक को सव्यभिचार कहते हैं। जिसमें व्यभिचार पाया जाय वह सव्यभिचार है। एक स्थान में अथवा एक धर्म में व्यवस्थित न होना व्यभिचार है। सव्यभिचार वह है जो ऐकान्तिक न होकर अनकान्तिक होता है । नित्यत्व एक अन्त (धर्म) है और अनित्यत्व भी एक अन्त है। जो हेतु नित्यत्व और अनित्यत्व दोनों धर्मों के साथ रहता है वह अनेकान्तिक होने से सव्यभिचार है ।
सध्यभिचार का उदाहरण-शब्द नित्य है, स्पर्शरहित होने से । जो नित्य नहीं है वह स्पर्शरहित भी नहीं है, जैसे घट । इस अनुमान से शब्द में नित्यत्व की सिद्धि की गई है । किन्तु यहाँ अस्पर्शत्व हेतु सव्यभिचार होने से नित्यत्व की सिद्धि नहीं कर सकता है क्योंकि अणु स्पर्शवान् होकर भी नित्य है । अतः अस्पर्शत्व हेतु नित्यत्व का व्यभिचारी है। बुद्धि स्पर्शरहित होकर भी अनित्य है। इस प्रकार अणु और बुद्धि इन दोनों दृष्टान्तों में अस्पर्शत्व हेतु का नित्यत्व साध्य के साथ व्यभिचार पाये जाने के कारण अस्पर्शत्व और नित्यत्व में साध्यसाधनभाव नहीं है । अतः यह हेतु सब्यभिचार है।
१. हेतुलक्षणाभावादहेतवो हेतुसामान्याद्धेतुवदाभासमाना हेत्वाभासाः। न्यायभा०
पृ० १७५ । २. प्रतिज्ञानन्तरं प्रयोगः सामान्यम् । यथैव हि हेतवः प्रतिज्ञानन्तरं प्रयुज्यन्ते एवं ते
हेत्वाभासा अपील्येव सामान्यम् । -न्यायवार्तिक पृ० १६३ । ३. सव्यभिचारविरुद्धप्रकरणसमसाध्यसमकालातीताहेत्वाभासाः। -न्यायसू० १।२।४ । ४, अनैकान्तिकः सव्यभिचारः। -न्यायसू० ११२।५ ।
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