Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 203
________________ 192 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 (ii) ऋ= आ-कृत्वा = काऊण (सेतु० ८।२८); मातृ = माआ (कुमा० ४१५७; ७८५); (लीला० ८३२)। (i) ऋ = इ-दृष्टि = दिट्ठी (सेतु० १३॥५९); (गउ० ७३९); (लीला० ३९६, ४०१); प्राकृत = पाइअ (कुमा० ११२, २०७४) ।। (iv) ऋ = उ-ऋजुक = उज्जुअ (सेतु० ९:४२); प्रवृष्ट = पउट्ट (ग० ११८९); अमृषावादिन् = अमुसावाइ (कुमा० ११८५); निभृतं = णिहुयं (लीला० ४२२) । (v) ऋ = ऊ--अमृष = अमूस (कुमा० ११८५)। (vi) ऋ = ए-वृन्त = वेण्ट (कुमा० ११८८; ३६)। (vii) ऋ= रि-सदृश = सरिस (सेतु. १०।२०) (लीला० १००२); ऋक्ष = रिच्छ (सेतु० ४।१९); संस्मृत = संभरिअ (गउ० ७०७); ऋण = रिण (कुमा० ११८९); ऋषि = रिसि (लीला० २७८, ८९१)। (viii) ऋ = ऋ-नृप = नृव (कुमा० ८।८२; ८३); कृपालु = कृवालु (कुमा० ८८२)।. (ix) ल = इलि-क्लप्त = किलित्त (कुमा० २।१)। (x) विशेष-भ्रातृ = भायर (कुमा० २०६४)। [३] ऐ के स्थान पर ए या अइ का आदेश हुआ है । यथा(1) ऐ = ए-सैन्य = सेण्ण (सेतु० ८।२७; १४।६३; १५१५) (कुमा० २।३); शैला = सेला (सेतु०८२५); शैलः = सेलो (लीला० ४३९); सैरिभ = सेरिह (गउ० ५३७); शैवल = सेवल (गउ० ५२१); कैलास = केलास (कुमा० २।४) (लीला० २८५; ८०५)। (ii) ऐ = अइ-वैर = वइर (कुमा० २।४; ६।४६,९५); देव = दइव (कुमा० २।५); वैर = वइर (लीला० १०५३ )। [४] औ के स्थान पर ओ या अउ आदेश हुए हैं । यथा() औ = ओ-धौत = घोअ (सेतु० १०४४); सोविदल = सोविअल्ल (गउ० २१६) गौतम-गोअम (कुमा० ७।३७); गौरी-गोरी (कुमा० ११७५, २०७१) (लीला० २८५); कौतूहलं = कोऊहलं (लोला० ८४२)। (ii) औ= अठ-गौरव = गउरव (कुमा० २।११); गोड = गउड (कुमा० ६।७८); कौलनारी = कउलणारी (गउ० ३१९) । [५] एक स्वर के स्थान पर प्रायः दूसरा स्वर पाया जाता है । यथा(i) अ = इ-संपत = संपइ (कुमा० ८।४८); यथा = जिह (कुमा० ८१४९); जयति = जिणइ (कुमा० ८1५३); यथा = जिवं (कुमा० ८।१४, २१, ३२, ४४)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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