Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

Previous | Next

Page 265
________________ 254 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 राम ने धनुषाकार समुद्र की तरंगों के आघातों को सहने वाले विध्यपर्वत को प्रत्यंचा के समान देखा। इस रूपक गभितोत्प्रेक्षा के माध्यम से विन्ध्यपर्वत का विम्ब अत्यन्त सुन्दर बना है। सह्य (१/५६) मलय (१/५९) के अतिरिक्त अन्य स्थलों पर षष्ठ, सप्तम एवं नवम आश्वासों में पर्वतों के अनेक रूपों एवं अवस्थाओं का बिम्ब लक्षित होता है । (vii) कन्दरा कुहरेसु णिवामणिप्पअम्पसरिअअम् ।' सुवेल की कन्दराओं में पवन के चलने से नदियों की जलधारा शान्त है। प्रस्तुत संदर्भ में सुवेल पर्वत में विद्यमान अनेक कन्दराओं का बिम्ब रूपायित हो रहा है । अन्यत्र ६/९२, ९/३०, ३२, १०/५५ में भी कन्दराओं का उत्कृष्ट बिम्ब संलब्ध होता है। (xi) वनस्पतिजगत इस वर्ग में वन, उद्यान, वृक्ष, लता, पुष्प एवं फल इत्यादि के विम्बों को रखा गया है। (१) वन-कुमुदवन कुमुअवणाण तत्य णहअन्बलग्गाणं रविअरदसणे विण हवलग्गाणम् ॥१ सुवेल पर्वत पर विद्यमान चन्द्रमण्डल के समीपस्थ कुमुद वनों के विकास में सूर्य किरणों के दर्शन से भी विघ्न नहीं होता है । प्रस्तुत गाथा में कुमुदवन का अतिरमणीय बिम्ब प्रतिबिम्बित हो रहा है । कुमुदवन रात्रि में हो विकसित होते है लेकिन पर्वत पर सूर्य किरणों के पड़ने पर भी उनके विकास में कोई बाधा नहीं पड़ती है, क्योंकि कुमुदवन चन्द्रमण्डल के सन्निकट अवस्थित है। इसके अतिरिक्त मलयवन (५/६७) का भी रमणीय बिम्ब प्राप्त होता है । (२) वृक्ष-सेतुबन्ध में विविध प्रकार के वृक्षों का बिम्ब उपलब्ध होता हैमलगवृक्ष णवपल्लबसच्छाआ जलमोअरसिसिरमासअविइज्जन्ता। वाअन्ति तक्मणुक्लअहरिहत्थुक्खितभेम्मला मलअदुमा ॥२ नवीन पल्लवों के कारण सुन्दर आभा वाले बादलों से बीच के शीतल पवन से विजित चन्दनवृक्ष, वानरों के हाथों उखाड़कर फेके जाने पर तत्क्षण ही सूख रहे है। प्रस्तुत संदर्भ में नवीन पल्लवों, सुगन्धित पवन से युक्त तथा वानरों के हाथों उखाड़ कर फेंकने से सूखते हुए मलयवृक्ष का बिम्ब रूपायित हो रहा है। सेतुबन्ध में अन्यत्र भी मलयवृक्ष के सुन्दर एवं सुवासित बिम्ब प्राप्त होते हैं मलयवृक्ष (६/४३), (१४/२५) ९/४५ हरिचन्दन वृक्ष की छाया ९/८, आदि। इसके अतिरिक्त अन्य प्रकार के वृक्षों का भी बिम्ब सेतुबन्ध में मिलता है-यथा वृक्ष ६६२ उखड़े वृक्ष ७/४४ विषवृक्ष ९/४४ आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290