Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 278
________________ तीर्थङ्करों के रूप में बिहार की जैनधर्म को देन 267 माना गया है। इनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता रानी त्रिशला थीं। महावीर के शरीर की ऊंचाई सात हाथ तथा शरीर का वर्ण स्वर्ण के समान कान्तियुक्त था। महावीर का घरेलू नाम वर्द्धमान था। वर्द्धमान ने तीस वर्ष की आयु में संन्यास ग्रहण कर बारह वर्ष छः माह तक लगातार कठिन तपस्या के उपरान्त बयालिस वर्ष की अवस्था में ऋजुपालिका नदी के तट पर केवलज्ञान प्राप्त किया था। तदुपरान्त तीस वर्षों तक अपना धर्म-प्रचार करते हुए बहत्तर वर्ष की आयु में पावा में कात्तिक माह की अमावस्या के दिन मोक्ष प्राप्त किया। इनकी शिष्य सम्पदा में चौदह हजार श्रमण तथा तीन हजार छः सौ श्रमणियां थीं। महावीर के जीवन की कई घटनाओं के सम्बन्ध में श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं में मतैक्य नहीं है । श्वेताम्बरों के अनुसार महावीर सर्वप्रथम ब्राह्मणी देवानन्दा के गर्भ में आये थे, जिसे इन्द्र द्वारा क्षत्रियानी त्रिशला के गर्भ में प्रतिस्थापित किया गया था। दिगम्बर सम्प्रदाय इसमें विश्वास नहीं करता है । इसी प्रकार श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार महावीर का विवाह यशोदा से हुआ था, जिससे प्रियदर्शना नामक एक कन्या भी उन्हें उत्पन्न हुई थी। बिहार की पावन भूमि पर उत्पन्न तीथंकुरों के इस विवरण के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है कि लगभग एक तिहाई तीर्थङ्करों को जन्म देने का श्रेय अकेले बिहार को प्राप्त है । इनमें दो महत्त्वपूर्ण तीर्थङ्कर-मल्लि और महावीर भी सम्मिलित है । महावीर केवल महत्वपूर्ण ही नहीं, बल्कि वे सभी तीर्थङ्करों से अधिक महत्त्वपूर्ण है । वह इसलिए नहीं कि वे ऐतिहासिक है, बल्कि इसलिए कि जैनधर्म हर दृष्टि से महावीर का धर्म है, निगाण्ठणात पुत्र का धर्म है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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