Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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बिहार को जैन गुफायें
269 हैं। बराबर एवं नागार्जुनी पर्वत मगध की प्राचीन राजधानी से समीप है, इसीलिए प्रयोग स्वरूप इस महत्वपूर्ण कार्य को अशोक ने अपनी सीधी देख-रेख में करवाया ।
सम्राट अशोक ने बराबर पर्वत पर चार गुफाओं-कर्नकोपर, सुदामा, लोमश ऋषि तथा विश्वझोपड़ी को कठोर काले ग्रेनाइट पत्थर में खुदवाया। इस पर्वत का प्राचीन नाम खलतिक पर्वत है। गया से पटना जाने वाली रेलवे पर बेला स्टेशन से लगभग आठ मील पूर्व यह स्थित है । कहीं तो एक गुफा में दो कोष्ठ है और कहीं एक ही दीर्घ प्रकोष्ठ । इन गुफाओं में अशोक कालीन बज्रलेप की पालिश दिखाई पड़ती है।
सुदामा गुफा इन गुफाओं में सबसे पुराना है। इसके प्रवेश द्वार के पूर्वी दीवार पर मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में एक अभिलेख उत्कीर्ण है जिससे पता चलता है कि यह गुफा अशोक के राज्यकाल के बारहवें वर्ष में (लगभग २५२ वी० सी०)' में आजीविक साधुओं के निमित्त निर्मित कराई गई। इस गुफा का नाम इस अभिलेख में निगोह-कुभा अर्थात् वटवृक्ष गुफा अंकित है । मूल अभिलेख इस प्रकार है
लाजिना पियवसिना बुवाइस वसाभिसितेना इयं निगोह कुभा विना आजीविकेहि । सुदामा गुफा की बनावट देहात की झोपड़ी के सदृश है, जिसका ऊपरी भाग आधी गोलाई लेकर बनाया जाता है और दो किनारों पर बांस के खम्भे सहारा के लिए जमीन में स्थिर किये जाते है। इसी दीवार में लम्बवत कटान है, जो वांस के खंभों की याद दिलाती है। उसी ग्रामीण स्थापत्य को पत्थर में खड़ा किया गया है। इसके मुख्य द्वार की स्थापत्य कला पर मिश्र की कला का प्रभाव है। इसके अन्दर के गोलाकार कमरे का वृत्ताकार माप लगभग १९ फीट है, जबकि बाहर के कमरे का ३२ फीट १ इंच लम्बाई एवं १९ फीट ६ इंच चौड़ाई है। इस गुफा में भारत की सबसे पुरानी चित्रकारी भी है।'' यह चित्रकारी सफेद रंग से चमकीले दीवारों पर की गई है। इसी गुफा से सटे प्रसिद्ध लोमश ऋषि गुफा के मुख्य द्वार पर उत्कीर्ण हाथियों के समूह का अंकन विश्वविख्यात है । यह गुफा भी सम्भवतः आजीविको के निमित्त ही सम्राट अशोक ने निर्मित कराया था। यदि सुदामा गुफा एवं लोमश ऋषि गुफा के दो कमरों को मिला दिया जाय तथा बीच की दीवार एवं द्वार को हटा दिया जाय तो पश्चिम भारत के अर्घवृत्ताकार चैत्य का रूप स्पष्ट हो जाता है।"
इन गुफाओं से लगभग एक हजार गज पूर्व में विश्वझोपड़ी गुफा अवस्थित है। इसका मुख्य द्वार दक्षिण की ओर है । सुदामा गुफा की तरह यह भी दो कमरों का है । इसको बाहरी कक्ष की माप १४" x ८४" है। जबकि अन्दर का वृत्ताकार कमरा लगभग ११ फीट का है । बाहर का कमरा चमकदार है । अन्दर का कमरा अधूरा सा है । इसके मुख्य द्वार की दाहिनी दीवार पर एक अशोककालीन अभिलेख उत्कीर्ण है, जिससे पता चलता है इसे भी उसने अपने राज्यकाल के बारहवें वर्ष में आजीविक साधुओं के लिए निर्माण करवाया था। अभिलेख में इस पर्वत का नाम खालतिक उत्कीर्ण है -
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