Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 7
में कहा है-"पुराने ऋषि संयमी और तपस्वी थे। वे पांच प्रकार के विषय भोगों को छोड़ कर आत्मोन्नति के लिए आचरण करते थे। स्वाध्याय ही उनका धन्य-धान्य था। वे निर्दोषी अजेय और धर्म से रक्षित थे तथा विद्या और आचरण की गवेषणा में विचरण करते थे । वे ब्रह्मचर्य, शील, ऋजुता, मृदुता, तप, सौजन्य, अहिंसा तथा क्षमा की प्रशंसा करते थे।"२१ वह कहते हैं कि तत्कालीन ब्राह्मण उनके द्वारा रचित मन्त्रों का पाठ किया करते थे । बुद्ध वे ब्राह्मणों के शुकवत् मंत्रपाठ का ही परिहास किया है, इन मन्त्रदृष्टा ऋषियों का नहीं। वास्तव में बुद्ध के अनुयायियों एवं जनसामान्य के बीच उनके कुछ प्रबुद्ध ब्राह्मण शिष्यों की अत्यधिक प्रतिष्ठा थी। बुद्ध के ब्राह्मण शिष्यों में से ही दो-सारिपुत्र और मौद्गल्यायन का सम्मान बुद्धतुल्य था । स्वयं बुद्ध भी उनकी प्रशंसा करते थे।
भगवान बुद्ध द्वारा जिन लोगों को बौद्ध-संघ में प्रव्रजित किया गया उनमें प्रथम बड़ा दल उन जटिलों का था जिसका नेतृत्व ब्राह्मण कश्यप बंधु करते थे।"इनकी आध्यात्मिक उपलब्धि के संकेत त्रिपिटक में प्राप्त होते हैं। बौद्धधर्म के प्रचार-प्रसार में बौद्ध भिक्षुओंभिक्षणियों की क्रियाशीलता को विस्मृत नहीं किया जा सकता । थेर तथा थेरी गाथा में कुल ३३२ भिक्षु और भिक्षुणियों के उद्गार संकलित है । इनमें २६१ भिक्षु तथा ७१ भिक्षुणियाँ है। इनमें से १३४ ( करीब ४०.८% ) प्रव्रज्या ग्रहण करने से पूर्व ब्राह्मण थे । इनमें ११७ भिक्ष तथा १७ भिक्षुणियाँ थी। इसके अतिरिक्त दीघनिकाय के 'महापदान सुत्त' में छः बुद्धों का वर्णन है जिनमें से तीन-कुकुसन्ध, कोणागमन तथा कश्यप ब्राह्मण थे।
केवल भगवान् बुद्ध ने ही ब्राह्मणों की प्रशंसा नहीं की है बल्कि ब्राह्मणों ने भी बुद्ध की प्रशंसा की है । दीघनिकाय के 'कूटदन्त सुत्त' में कूटवन्त नामक ब्राह्मण को हम बुद्ध के बारे में निम्नलिखित विचार प्रकट करते हुए देखते है-"श्रमण गौतम शीलवान् आर्यशीलयुक्त है। वे काम-राग रहित, चपलता रहित है । कर्मवादी-क्रियावादी हैं तथा ब्राह्मण संतानों के निष्पाप अग्रणी है।४
पालि बौद्ध साहित्य में दर्जनों ऐसे ब्राह्मणग्रामों का उल्लेख है जहाँ भगवान् बुद्ध को प्रभूत समादर प्राप्त हुआ। इन ग्रामों में उन्होंने जो उपदेश दिये वे काफी महत्त्वपूर्ण हैं । ये प्राम ब्राह्मणों को ब्रह्मदेय के रूप में शासकों द्वारा प्राप्त हुए थे। ये ब्राह्मण महाशाल की श्रेणी के थे तथा ग्राम में उनकी काफो प्रतिष्ठा थी। इन सभी ग्रामों में भगवान् बुद्ध द्वारा समयसमय पर दिये गये उपदेशों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि बुद्धोपदेश सुनने तथा अपनी शंकाओं के निवारण के पश्चात् ब्राह्मण महाशालों ने शिष्य सहित बौद्धधर्म को स्वीकार कर इसके प्रसार में पर्याप्त योगदान किया। इन ब्राह्मण महाशालों में निम्नलिखित पांच के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है-चंडि ब्राह्मण, तारूक्ष ब्राह्मण, पौष्करसाति ब्राह्मण, जानुस्सोणि ब्राह्मण तथा तोदेय्य ब्राह्मण । भगवान् बुद्ध ने इन ब्राह्मणों की प्रशंसा की है । यह इस बात का परिचायक है कि अवैदिक कहे जाने वाले बौद्धधर्म की सांस्कृतिक भौगोलिक सीमा में ब्राह्मण बौद्धों के साथ घुल-मिल गये थे । इन ग्रामों में बुद्ध द्वारा दिये गये उपदेशों से इन
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