Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 277
________________ 266 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 तथा तीन लाख पैसठ हजार श्राविकाएं थीं । इनके श्रमण-प्रमुख शिष्य इन्द्र थे । धमणी प्रमुख शिष्या बन्धुमती थीं। मल्लि ने सम्मेदशिखर पर मोक्ष प्राप्त किया था। ___महाकाल और राजा अहमिन्द्र देव के रूप में इनके दो पूर्वभवों का उल्लेख 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' में हुआ है। मल्लि पुरुष थे अथवा महिला-इस बिन्दु पर दिगम्बर एवं श्वेताम्बर परम्परा में मतभेद है । जैन परम्परा के अनुसार साधारणतया तीर्थकुर को पुरुष योनि में ही जन्म लेना चाहिए । किन्तु श्वेताम्बर आगम साहित्य में इस बात का उल्लेख है कि इस कालचक्र में घटने. वाली दस आश्चर्यजनक घटनाओं में महावीर के गर्भ का स्थानान्तरण एवं मल्लि का स्त्रीरूप में तीर्थङ्कर होना भी सम्मिलित है । इसके विपरीत दिगम्बर परम्परा मल्लि को पुरुष तीर्थङ्कर के रूप में ही स्वीकारती है । ५. सुव्रत __ जैनधर्म के बीसवें तीर्थङ्कर सुब्रत का जन्म बिहार की पावन भूमि राजगृह में हुआ था। इनके पिता का नाम सुमित्र एवं माता का नाम पद्मावती था। इनके शरीर की ऊँचाई २० धनुष और वर्ण गहरा नीला था। जीवन के अन्तिम समय में कठोर तप के बल पर चम्पक वृक्ष के नीचे इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया था। तीस हजार वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने के उपरान्त सम्मेदशिखर पर इन्होंने मोक्ष की प्राप्ति की थी । इनके संघ में तीस हजार श्रमण एवं पचास हजार श्रमणियाँ थीं । कुम्भ इनके प्रधान शिष्य एवं पुष्पवती प्रधान शिष्या थीं। ___ सुरश्रेष्ठ राजा और अहमिन्द्र देव रूप में इनके दो पूर्वभवों का उल्लेख 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' में उपलब्ध है । अन्य परम्पराओं में इनका कोई उल्लेख प्राप्त नहीं है। ६. नमिनाय जैनों के इक्कीसवें तीर्थङ्कर नमिनाथ का जन्म मिथिला के राजपरिवार में हुआ था। मिथिला के राजा विजय इनके पिता थे और रानी वप्रा माता । इनके शरीर की ऊंचाई पन्द्रह धनुष और वर्ण कांचन था। इन्होंने कठोर तप द्वारा वकुल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया था । दस हजार वर्ष की आयु पूरी होने पर इन्हें सम्मेदशिखर पर मोक्ष की प्राप्ति हुई। इनकी शिष्य सम्पदा में बीस हजार भ्रमण एवं एकतालिस हजार श्रमणियां थीं। शुभ इनके प्रमुख शिष्य थे एवं अमला प्रमुख शिष्या। 'त्रिषाष्टिशलाकापुरुषचरित' में राजा सिद्धार्थ और तैंतीस सागर की आयुवाले अपराजित विमान के देव के रूप में इनके दो पूर्वभवों का विवरण मिलता है। ब्राह्मण परम्परा में मिथिला के राजा के रूप में तथा बौद्ध परम्परा में नमि नामक प्रत्येक बुद्ध के रूप में एक नमि का उल्लेख उपलब्ध है। ७. महावीर जैनधर्म के चौबीसवें और अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर का जन्म बिहार की पावन घरती पर ही हुआ था। इनका जन्म-स्थान वैशाली के कुण्डपुर (वासुकुण्ड) नामक ग्राम को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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