Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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तीर्थङ्करों के रूप में बिहार की जैनधर्म को देन
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२. शीतलनाथ
बिहार में जन्म ग्रहण करनेवाले दूसरे तीर्थङ्कर शीतलनाथ है । जैन तीर्थङ्करों में इनका स्थान दसा है। ये बिहार के हजारीबाग जिले के भहिलपुर निवासी दृढ़रथ और उनकी पत्नी नन्दा की सन्तान थे । इनकी ऊंचाई १० धनुष थी । शरीर का वर्ण स्वर्णिम था। जीवन के अन्तिम भाग में इन्होंने मुनि-जीवन ग्रहण कर लगातार तीन महीने तक घोर तपस्या के उपरान्त पीपल अथवा पिलक वृक्ष के नीचे इन्होंने केवल ज्ञान प्राप्त किया था। इनके संघ में एक लाख श्रमण तथा एक लाख बीस हजार श्रमणियां थीं। आनन्द इनके प्रमुख शिष्य थे और सुलसा प्रमुख शिष्या । इन्हें भी सम्मेदशिखर पर मोक्ष प्राप्त हुआ था।
'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' में पद्मोत्तर राजा और प्राणतर स्वर्ग में बीस सागर की स्थितिवाले देव के रूप में इनके पूर्व में जन्मधारण करने का उल्लेख है। अन्य परम्पराओं में इनका भी उल्लेख नहीं है।
३. वासुपूज्य
___ बिहार की भूमि पर अवतार लेनेवाले तीसरे तीर्थकर वासुपूज्य हैं। तीर्थङ्करों में इनका स्थान बारहवां है। इनका जन्म बिहार के चम्पा में हुआ था। इनके पिता वसुपूज्य और माता जया थीं। इनके शरीर की ऊँचाउ ७० धनुष और शरीर का वर्ण लाल कहा गया है। इन्होंने पाटल वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त किया था। इसकी शिष्य सम्पदा बहत्तर हजार श्रमण एवं तीन हजार श्रमणियों की थी। इनके प्रधान शिष्य सुधम्म और शिष्या धरणी थी । आगम ग्रन्थों के अनुसार इनका मोक्ष चम्पा में ही हुआ था।
पदमोत्तर राजा और ऋद्धिमान देव के रूप में इनके दो पूर्व भवों का उल्लेख 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' में उपलब्ध है। अन्य परम्पराओं में इनका कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
४. मल्लि
___ जैनधर्म के उन्नीसवें तीर्थङ्कर की जन्मभूमि विदेह की राजधानी मिथिला थी । ये मिथिला के राजा कुम्भ और उनकी रानी प्रभावती की सन्तान थीं। इनके शरीर की ऊंचाई २५ धनुष और शरीर का रंग सांवला था। श्वेताम्बर जैन आगम में महावीर के साथ मल्लि का उल्लेख भी विस्तार से हुआ है। ज्ञाताधर्मकथा के अनुसार मल्लि के सौन्दर्य की प्रशंसा सुनकर साकेत के राजा प्रतिबुद्ध, चम्पा के राजा चन्द्रछाग, कुणाल के राजा रुक्मि, वाराणसी के राजा शंख, हस्तिनापुर के राना अदीनशत्रु और कम्पिलपुर के राजा जितशत्रु इनपर अनुरक्त होकर विवाह के लिए मिथिला आ धमके। किन्तु मल्लि ने अपने चातुयं से इन सभी राजाओं को समझाकर वैरागोन्मुख कर दिया और सभी ने मल्लि के साथ ही दीक्षा ग्रहण कर ली। दीक्षा के दिन ही मल्लि ने केवलज्ञान का साक्षात्कार कर लिया। मल्लि की शिष्य सम्पदा में चालीस हजार श्रमण, पचास हजार श्रमणियां, एक लाख चौरासी हजार धावक
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