Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 272
________________ सेतुबन्ध में बिम्ब-विधान 261 261 सत्तच्छआणं गन्धो लग्गइहिअए खल्लइ कलम्बामोओ ॥ यहां पर सप्तच्छद एवं कदम्ब का गन्ध घ्राणेन्द्रिय ग्राह्य है । अन्तस्करणेन्द्रिय पाह्य बिम्ब भाव बिम्ब और प्रज्ञा बिम्ब इस संवर्ग के अन्तर्गत आते हैं (१) भावबिम्ब-हृदय के विभिन्न भावों यथा हर्ष, उत्साह, शोकादि का ग्रहण भाव. बिम्ब के अन्तर्गत होता है । सेतुबन्ध के अनेक स्थलों पर इस संवर्ग के बिम्ब उपलब्ध होते है धैर्य (११/५), अनुराग (१०८२), हर्ष (११/४), उत्साह (३/१७), प्रसन्नता (१०/७०), विषाद (११/४), लज्जा (१०/७३), विरह (५/१), क्रोध (५/२, १०/३-४), संशय (५/१८), काम (१०/६, ११/१०), रोष (९/३६) आदि हृदयगत भावनाओं के बिम्ब प्राप्त है। (२) प्रमा बिम्ब-बुद्धिन्द्रिय-ग्राह्य विषयों को प्रज्ञा बिम्ब कहते हैं । यश, मान, ज्ञान, कल्याण आदि का ग्रहण प्रज्ञा बिम्ब के अन्तर्गत आते हैं। सेतुबन्ध के अनेक स्थलों पर यशादि के बिम्ब चित्रित हैं । कीति (१/४८), आज्ञा (४/३५, ६/१९), यश (६/७५), नियम (८/२५), मन्त्र (१४/५६), चरित्र (४/३०), कल्पना (११/५०) आदि के बिम्ब अत्यन्त आह्लादक है। इस प्रकार सेतुबन्ध में सहस्रो बिम्बों का चित्रण हुआ है जिससे काव्य की रमणीयता और चारुता संवर्षित होती है । SELER पाद-टिप्पणी (१) शार्टर आक्सफोर्ड डिक्सनरी (२) चैम्बर्स ट्वेन्टिएथ डिक्सनरी (३) इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका-१२/१०३ (४) द पोयटिक इमेज, पृ० १९ (५) जाज ढली पोयटिक प्रोसेस, पृ० १४५ (६) काव्य में उदात्त तत्त्व, पृ० ६९ (७) शेक्सपियर इमेजरो एण्ड ह्वाट इट टेल्स अस, पृ० ९ (८) काव्य बिम्ब, पृ. ५ (९) सेतुबन्ध १/१५ (१०) तव १/३५ (११) तत्रैव १/३८ (१२) , १/४३ (१३) , ४/३९ , ५/४२ १४/३३.३२ १४/२५ १५/५५ १५/५६-६१ ११/५३ ११/८५ ,, २/२४ (२३) , १/३५ १/३८ (२५) , १/१६ (२६) , १/१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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