Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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सेतुबन्ध में बिम्ब विधान
257 बाणों से कटे किन्तु फण मात्र जिनका शेष बचा है ऐसे सो का क्रुद्धदृष्टि का बिम्ब प्रतिरूपित हो रहा है।
सर्प-फण (५/३९) भुजंगश्वांस (५/४७) सर्प कुण्डली (६/४३) आदि का बिम्ब भी सेतुबन्ध में प्राप्य है। मच्छली
वोसन्ति विद्यमहणा पुट्टिपटिट्ठिअपलोट्टमन्दरसिहरा ।
आसाइआमअरसा वाणवढप्पहरमुच्छिा तिमिमच्छा ॥ मन्दराचल को धारण करने से जिनकी पीठ पर रगड़ के चिह्न हो गए हैं वैसे तिमि-मत्स्य बाणों के आघात से मूच्छित हो रहे हैं ।
___ यहाँ मूच्छित तिमि-मत्स्यों का बिम्ब रूपायित हो रहा है जिनके पृष्ठभाग पर मन्दराचल की रगड़ से उत्पन्न चिह्न भी विद्यमान हैं। मीनकुल ६/६५ नदीमत्स्य ७/३७ आदि का भी बिम्ब प्राप्त होता है। भौरा
टुमकुसुमममणिग्गअसरपुड्खालग्गणिज्जमागमहुअरम् ।' युद्ध के बाद निरापदस्थान में स्थित उभय पक्ष की सेनाओं ने विस्मयपूर्वक देखा कि वृक्षों के फूलों के मध्य भाग से निकलकर भ्रमर, बाणों की पूंछों में लगे हुए नीचे चले आ रहे है।
इन्द्रजित भयंकर युद्ध की तैयारी में मधुपान कर रहा था। थोड़ा-सा मधु उसके धाणों की पलों में भी लग गया जिससे आकर्षित होकर भौंरे वृक्ष के पुष्पों से निकलकर आ रहे थे। (xii) लोक
विभिन्न लोकों का बिम्ब सेतुबन्ध में प्रयुक्त मिलता है। पृथ्वी
जह जह संखोहिज्जह तह तह कइवेहभरसहा होइ मही। पर्वतों के उखाड़े जाने से क्रुद्ध नागराज के फण पर स्थित पृथ्वी ज्यों-ज्यो आंदोलित होती है त्यों-त्यों वानरों के शरीर के भार को सहन करने में असमर्थ होती जाती है।
संक्षुब्ध शेष के फणों पर कांपती पृथ्वी की असमर्थ का बिम्ब रूपायित हो रहा है।
पाताल
भीअणिसण्णजलभरं पलोट्टणिअअभर मिण्णवक्खमहिहरम् ।
वोसह विहिण्णसलिलं कुविख्वाइअभुअगमं पाआलम् ॥3 प्रस्तुत गाथा में पाताललोक का बिम्ब रूपायित हो रहा है । राम बाण से भीत बलचर पाताल में निश्चेष्ट पड़े हैं, पर्वत खण्डित होकर लोट रहे हैं, ऋद्ध सर्प दौड़ रहें है तथा पहाड़ों के आषात से जिसकी जलराशि फट गयी है ऐसा पाताल साफ दिखाई दे रहा है।
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