Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 204
________________ प्राकृत के प्रतिनिधि महाकाव्यों की भाषा 193 (ii) अ = e-ध्वनि = झुणि (कुमा० ११३७; ५।७५; ६१५६); कथय = कहेसु (कुमा८७१)। अर्पित = उप्पिअ (गउ० १२०८); (लीला० ९८१) (ii) अ = ए-शय्या = सेज्जा (कुमा० ११४०; ५।९७); धीरयन्ति = धीरेंति (गउ० ९७०)। (iv) आ = अ-मार्गाः = मग्गा (सेतु० १३.११); उल्लास = उल्लस (गउ० ११५६); कान्त = कत (कुमा० १११९); चामर = चमर (कुमा० ६।२९ ); आत्मप्रभो = अप्पणंपहुणो (लीला० ८९०)। (v) Bा = ए-पारावत पारेवय (कुमा० ११५४); अभिलाति = अहिलेइ (गउ० १७८); मुहूर्तमात्रं = मुहुत्तमेत्तं (लीला ७९४)। (vi) = अ-पथिन = पंथ (कुमा० १११९); पथिन = पह (कुमा० ११५७, ६६); मूषिक = मूषय (कुमा० ११५८); इति = इअ (गउ० २५३) । (vii) इ = 7-इक्षु = उच्छु (कुमा० १।६३); द्विधा = दुहा (सेतु० ८।८३) । (viii) इ = ए-पिण्ड = पेण्ड (कुमा० ११५६); विडम्बयन्ति = वेलंबंति (गउ० ७५३)। (ix) F = अ-नषेधिकी = निसिहिअ (कुमा० २।५०); शीघ्र=समराहा (गउ० २५८)। (x) ई - ए-भीषित = भेसिअ (सेतु० ७.४); आपीड = आमेल (गउ० ११२); कीदृश - केरिस (कुमा० ११६७); पीठ = वेढ (लीला० ६७१)। (xi) = = अ-गुरुकृत = गरुइअ (सेतु० १११४८, ५९; १५।११); मुकुलीभवत = मउलित (गउ० १०८५); मुकुर = मउर (कुमा० ३।६९); मुकुट = मउड (लीला० १२०)। (xit) = इ-शुक्ति-सिप्पि (से० ११२१; ६२; ६५); कापुरुष-कावुरिष (गउ०८९४); पुरुष = पुरिस (कु. १।१९; ६९; २०१५; ८।२७; (लोला० १०१४)। (xit) 3 = ओ-तुष्टि = तोसि (सेतु० ३।५६); व्युच्छेद = वोच्छेअ (गउ० ४९५); __ सुकुमार=सोमाल (कुमा० २।१४); कुतूहलम्कोहल्लं (लीला० ७८७)। (xiv) ऊ = ए-नूपुर नेउर (कुमा० ११७५; ३।२३); नूपुर = णेउर (लीला० २६;५४)। (xv) = = मो-स्थूल = थोर (सेतु० २।७; ५।५१; ५८; ८५); अमूल्य = अमोल्ल (गउ० १००६); तूणीर = तोणीर (कुमा० ११७६); स्थूल = थोर (लीला० २८८; ११२४ तथा ११८४)। (xvi) ९ =-जीयते जिवइ (सेतु. ८५०); हेषन्ते हेवंति (गउ० ८३१); पीयते पिज्जइ (कुमा० ८३१९); विरज्यन्ते = विरज्जति (लीला० ३५७) । (xvii) ९ = ई-प्रेयसी = पोअसी (कुमा० ३१७२); रेखा = लीह (कुमा० ८।६५) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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