Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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सेतुबन्ध में बिम्ब-विधान
249 उन राघव वीरों ( राम और लक्ष्मण ) की विकट नागों द्वारा आवेष्टित बाहुएँ मलय पर्वत की तराई में लगे चन्दन वृक्षों के समान स्थिर और स्पन्दनहीन हो गयी है। यहां नाग-पाश से आबद लक्ष्मण की भुजाओं की उपमा मलयाचल में लगे चन्दन वृक्षों से दी गयी है। जिस प्रकार सर्पो से निगडित चन्दनवृक्ष स्थिर एवं स्पन्दनहीन हो जाते है उसी प्रकार लक्ष्मण की भुजाएँ भी हो गयी है । यहाँ लक्ष्मण की भुजाओं का बिम्ब अत्यन्त सुन्दर है ।
पन्द्रहवें आश्वास में वीर धनुर्धर लक्ष्मण का दृश्य चित्त का विस्तार करता है। उनकी ओजस्वी वाणी शब्द-बिम्ब बनकर उत्साह सम्बधित करती है।
सीता-सेतुबन्ध की नायिका सीता का चरित्र अत्यन्त उदात्त, उत्कृष्ट एवं मानवीय रूप में चित्रित हुआ है। सीता का शील-सौन्दर्य एवं रूप-लावण्य अनेक स्थलों पर कवि ते सफलतापूर्वक रूपायित किया है। मुख्यतः सीता का कारुण्य रूप ही प्रतिबिम्बित हुआ है। मायाशीश को देखकर सीता की स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गयी है। वह मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़ी है
आलोइए विसण्णा उवणिज्जन्तम्मि वेविलं आढत्ता।
सोआ रअण्डिअरेहि रामसिर त्ति भणिए गअ चिचम मोहम् ॥१९ राम का मायाशीश देखकर सीता म्लान मुख हो गयी, समीप लाए जाने पर काँपने लगीं और यह कहे जाने पर कि यह राम का शीश है, वह मूच्छित हो गई। सीता के म्लान, वेपनशील एवं मूच्छित इन तीन रूपों के चित्रण से यह स्थल अत्यन्त मर्मान्तक बन पड़ा है । सीता के मन में उबलने वाली प्रतिशोध की भावना से सम्बद्ध बिम्ब तदनुकूल प्रभाव उत्पन्न करने में पूर्णतया सक्षम है। राम के मायाशीश को देखकर सीता के मरण का मार्ग प्रशस्त हो गया पर रावण के प्रति अपना प्रतिशोध पूर्ण न हो सकने के कारण सीता अत्यन्त विषण्ण हैं
तुह वाणुक्खअणिहअं वच्छिम्मि वहकण्ठमुहणिहाअंति कआ।
मह भाअधेअवलिआ विवराहुत्ता मणोरहा पल्हत्या ॥२° इस गाथा में मरणातुरा विषण्णमना सीता के रूप का स्पष्टरूपेण अंकन हुआ है ।
रावण-सेतुबन्ध का प्रतिनायक रावण हैं। यद्यपि वह वीर, पराक्रमी तथा ज्ञानी भी है लेकिन अपने गह्यं कर्मों के द्वारा अत्यन्त दुन्ति राक्षस के रूप में सामने उपस्थित होता है। उसका अद्भुत पराक्रम, शौर्य, धैर्य, युद्धोल्लास आदि का बिम्ब अत्यन्त सुन्दर बन पड़ा है तथापि वाल्मीकि के रावण की अपेक्षा सेतुबन्ध का रावण भीरु एवं कामुक के रूप में ही अधिक दिखाई पड़ता है। ग्यारहवें आश्वास में उसकी सीता-विषयक काम-व्यथा का विस्तृत चित्रण हुआ है।
युद्ध के समय रावण की वीरता अतुलनीय है। वह राम का समर्थ प्रतिद्वन्दी सिद्ध होता है
भिण्णो पिडालवट्टोण असे फुडभिरनिविरअणा विविआ।" मस्तक कट जाने पर भी वह कबन्ध रावण पर भीषण बाणों की वर्षा करता है तथा राम के बाणों का तीखा उत्तर भी दे
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