Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 250
________________ कलिकाल सर्वज्ञ कुन्दकुन्द : शिलालेखों के परिप्रेक्ष्य में जैसा कि यहाँ कहा गया है कि दिगम्बर जैन परम्परा के प्रायः सभी संघों ने कुन्दकुन्द की परम्परा के अन्तर्गत अपने को घोषित किया । इनमें द्रविडसंघ, नन्दि, सेन और काष्ठासंघये चार प्रमुख हैं । इन सभी के कुन्दकुन्द अन्वय से सम्बन्धित होने के शिलालेखादि में उल्लेख प्राप्त होते हैं । अंगदि से प्राप्त शिलालेख संख्या १६६ में द्रविड़संघ कोण्डकुन्दान्वय लिखा है । शिलालेख सं० ५३८ में सेनगण के साथ कुन्दकुन्दान्वय जुड़ा हुआ ही है और नन्दिसंघ तो मूलसंघ कुन्दकुन्दान्वय, देशियगण, पुस्तकगच्छ से सम्बद्ध था ही ।' मूलसंघ दिगम्बर परम्परा प्रमुखता से मान्य रहा है । मूलसंघ का सर्वप्रथम उल्लेख गंगवंश के महाराजा माधववर्मा द्वितीय और उनके पुत्र अविनीत ( सन् ४००-४२५ के करीब ) के लेखों में पाया जाता है ।" इसी मूलसंघ का उल्लेख अब तक मूर्तिलेखों आदि में प्रचलित भी है । कुन्दकुन्दान्वय का स्वतन्त्र प्रयोग आठवीं नौवीं शती के शिलालेख में देखा गया है तथा मूलसंघ कोण्डकुन्दान्वय का एक साथ सर्वप्रथम प्रयोग लेख सं० १८० ( लगभग १०४४ ई० ) में इस प्रकार पाया गया है - " श्रीमूलसंघ देशियगण, पुस्तक- गच्छ कोण्डकुन्दान्वय इङ्गुलेश्वरद बलिय शुभचन्द्रदेवर 13 अन्यान्य शिलालेखों में उल्लेख द्रष्टव्य हैं ।" दक्षिण की ओर के पूर्वमुख पर शक ... श्रवणबेलगोल में कत्तिले बस्ती के द्वारे से सं० १०२२ के लेख सं० ५५ पर भी लिखा है कि श्रीमतोवर्द्धमानस्य वर्द्धमानस्य शासने । श्रीकोण्डकुन्द-नामाभून्मूलसङ्खाग्रणी गणी ॥ ३ ॥ ५ श्रवणबेलगोल के महनवमी मण्डप में शक सं० १२३५ के लेख सं० ४१ कहा है Jain Education International 239 श्रीमूलसङ्घ- देशीगण - पुस्तकगच्छ कोण्डकुन्दान्वये । गुरुकुल मिह कथमिति चेद्ब्रवीमि सङ्क्षेपतो भुवने ॥२॥ १. जैन शिलालेख संग्रह भाग ३ शि० सं० ५३८, जैन सिद्धान्त भास्कर भाग किरण ४ पृ० ९० । २. जैन शिलालेख संग्रह भाग २ की प्रस्तावना | ३. जैन शिलालेख संग्रह भाग २ शि० सं० १८० पृष्ठ २२० - यह लेख दोड्डु — कणगालु में गौण के खेत के दूसरे पाषाण पर उत्कीर्ण है । ४. जैन शि० संग्रह भाग ३ लेख सं० ३०७, ३१३, ३१४, ३३५, ३५२, ३५६, ३६४, ३७२, ३७७, ३८४, ३८९, ३९४, ४०२, ४११, ४३९, ४४९, ४६६-७, ४७८, ५१४, ५२१, ५२४, २२६, ५३८, ५४७, ५५१, ५६०, ५६१, ५८०, ५८२, ५८४, ५८५, ५९०, ६००, ६२१, ६७३, ७०२, ७५५, ८३४, ८३६. ५. वही, भाग १ पृ० ११५ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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