Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 239
________________ 228 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 (५५) प्रतिव्यूह रचने की कला (५६) सेना के पड़ाव का प्रमाण जानना (५७) नगर का प्रमाण जानने की कला (५८) वस्तु का प्रमाण जानने की कला (५९) सेना के पड़ाव आदि डालने का परिज्ञान (६०) प्रत्येक वस्तु के स्थापन कराने की कला (६१) नगर निर्माण का ज्ञान (६२) इषत् को महत् करने की कला (६३) तलवार आदि की मूढ बनाने की कला (६४) अश्व शिक्षा (६५) हस्ति शिक्षा (६६) धनुर्वेद (६७) हिरण्यपाक, सुवर्णपाक, मणिपाक, धातुपाक बनाने की कला (६८) बाहुयुद्ध, दण्डयुद्ध, मुष्टियुद्ध, यष्टियुद्ध, युद्ध, नियुद्ध, युद्धातियुद्ध करने की कला (६९) सूत बनाने की, नली बनाने की, गेंद खेलने की वस्तु के स्वभाव जानने की, चमड़ा बनाने की कला का ज्ञान (७०) पत्रछेदन, वृक्षांग विशेष छेदने की कला (७१) सजीव, निर्जीव अर्थात् संजीवनों विद्या (७२) पक्षी के शब्द से शुभाशुभ जानने की कला। बहत्तर कलाओं के अतिरिक्त जैन सूत्रों में निम्नलिखित विषयों का वर्णन आया है (i) वेद-जैन ग्रन्थों में तीन वेदों का उल्लेख मिलता है यथा-ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद ।' लेकिन आदिपुराण में अथर्ववेद का भी उल्लेख किया गया है।' (ii) वैदिक ग्रन्थों में निम्नलिखित शास्त्रों का उल्लेख हैछः वेद-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, इतिहास और निघटु । छ: वेदांग-गणित, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरुक्त और ज्योतिष, छः उपांगों में, वेदांगों में वर्णित विषय और षष्ठितंत्र । (iii) उत्तराध्ययन की टोका' में चौदह विद्यास्थानों को गिनाया गया है। जो निम्न प्रकार से है-छह वेदांग, चार वेद, मीमांसा, न्याय, पुराण और धर्मशास्त्र । (iv) अनुयोगद्वार* और नन्दिसूत्र में भी लौकिकश्रुत का वर्णन मिलता है-भारत, रामायण, भीमासुरोक्त, कौटिल्य, शकटभद्रिका, घोटकमुख, कासिक, नागसूक्ष्म, कनकसप्तति, वैशेषिक, बुद्धवचन, पैराशिक, कापिलीय, लोकायत, षष्टितंत्र, माठर, पुराण, व्याकरण, भागवत, पातञ्जलि, पुष्यदैवत, लेख, गणित, शकुनिरुत, नाटक अथवा बहत्तर कलाएँ और चार वेद अंगोपांग सहित विषयों की शिक्षा दी जाती थी। स्थानांग सूत्र में नो पापश्रुत स्वीकार किये गये हैं १. स्थानांग-३.१८५ । २. आदिपुराण-२४८ । ३. व्याख्याप्रज्ञप्ति २.१, औपपातिक ३८, पृ० १७२ । ४. उत्तराध्ययन-३, ५६-अ । ५. अनुयोगद्वार-सूत्र ४० आदि । ६. नन्दिसूत्र-सूत्र ७७ पृ० १५५ । ७. स्थानांग सूत्र-९.६.६६९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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