Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 194
________________ श्रमण-संस्कृति के पुण्यप्रतीक : इन्द्रभूति गौतम 183 धर्मद्वयं त्रिविघकाल समग्र कर्म, षड्द्रव्य काय संहिता। समयैश्च लेश्या तत्त्वानि संयमगतीसहितापदार्थेरंगप्रवेदमनिशंवदचास्तिकायम् ।। गौतम इन्द्र के प्रश्न को सुनकर समवशरण में पहुँचते हैं, वहां उनका ज्ञान गर्व चूर हो जाता है और वे भगवान् महावीर के पट्टशिष्य बन जाते हैं। इसो अधिकार में गौतम की कैवल्य-प्राप्ति का वर्णन भी है। पांचवें अधिकार में २६९ श्लोक हैं। इनमें गौतमस्वामी के उपदेश वर्णन के साथ-साथ त्रेसठ शलाका पुरुषों का संक्षिप्त वर्णन है । अन्त में गोतमस्वामी की मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् उनके चरित्र की महत्ता का दिग्दर्शन कराया गया। ग्रन्थ के अन्त में भट्टारक परम्परा का वर्णन है। यह वर्णन अपने आप में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें मूलसंघ के नेमिचन्द्र आदि पांच भट्टारकों के उल्लेख आए हैं, जिससे भट्टारक परम्परा के क्रम-निर्धारण में सहायता मिलती है। इन्द्रभूति गौतम-साहित्य सम्बन्धी परम्परा में आधुनिकतम शैली में पूज्य गणेश मुनि शास्त्री द्वारा लिखित 'इन्द्रभूति गौतम : एक अनुशीलन' नामक पुस्तक बहुत ही उपयोगी है । इसके लगभग १३९ पृष्ठों में लेखक ने इन्द्रभूति गौतम पर उपलब्ध सामग्री का निचोड़ प्रस्तुत कर दिया है। विषय प्रस्तुत करने की शैली बहुत ही मार्मिक, रोचक एवं सरल है। यह सभी स्वाध्यायशील साहित्य-रसिकों के लिए समान रूप से उपयोगी है। संयोग से इस पुस्तक का बहुत अधिक प्रचार नहीं हो पाया है, इसीलिए इन्द्रभूति के जीवन-दर्शन से कम ही लोग सुपरिचित हो सके हैं। ___ इन्द्रभूति गोतम से सम्बन्धित एक अन्य छोटो सी रासा शैली की रचना है 'गौतम रासा'। इसका संग्रह आदरणीय "गणेश मुनि शास्त्रो" ने अपनी पूर्वोक्त पुस्तक के परिशिष्ट में प्रस्तुत किया है । इसको रचना ढाल छन्द में की गई है जिसमें १६ पद्य हैं। इन पद्यों में गौतम की ज्ञान-जिज्ञासा का वर्णन किया गया है। इस रचना के लेखक है ऋषि रायचन्द्र । वि० सं० १८३४ में भादों सुदी नवमी को बीकानेर में अपने चातुर्मास के समय इन्होंने उक्त ग्रन्थ की रचना की थी। __ इस प्रकार इन्द्रभूति गौतम के जीवन-दर्शन पर संक्षेप में विचार किया गया। लेकिन यहाँ तो, प्रस्तुत पंक्तियों की लेखिका ने जो सामग्री उपलब्ध हो सकी है उसका यथासम्भव उपयोग किया है, किन्तु ये विचार अन्तिम नहीं है। बहुत सम्भव है कि इस विषय में और भी अधिक सामग्री प्रकाश में आई हो और मुझ तक वह नहीं पहुँच सकी हो। लेकिन यह विश्वास अवश्य हो गया है कि इस दिशा में शोष खोज की पर्याप्त गुंजाइश है। श्रीवर्द्धमानात् त्रिपदीमवाप्य मुहूर्त्तमात्रेण कृतानि येन । अंगानि पूर्वाणि चतुर्दशापि स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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