Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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श्रमण-संस्कृति के पुण्यप्रतीक : इन्द्रभूति गौतम
181 विद्वानों के अन्तरङ्ग-बहिरङ्ग परीक्षण के पश्चात् इस ग्रन्थ के कर्ता श्री विनयप्रभ उपाध्याय सिद्ध होते हैं, जो मुनि एवं कवि भी थे।' उन्होंने इसकी रचना वि० सं० १४१२ में गौतमस्वामी के कैवल्य-महोत्सव के अवसर पर की थी। उसकी कथा निम्न प्रकार है
मगध देश में राजगृह के समीप गुब्बर नामक ग्राम में उनका जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम वसुभूति एवं माता का नाम पश्वी था। उनका मूल नाम इन्द्रभूति एवं गोत्र गौतम था। उनके शरीर की ऊंचाई ७ हाथ थी। इन्द्रभूति ५०० शिष्यों के प्रतिभा सम्पन्न गुरु थे। एक बार भगवान महावीर का समवशरण राजगृही नगरी में आया। हजारों नर-नारियों एवं देवताओं को वहां जाते देखकर गौतम को अपने ज्ञान का अहंकार हो गया और वे अपने ५०० शिष्यों सहित महावीर के समवशरण में शास्त्रार्थ हेतु गए। महावीर ने उनकी शंकाओं का समाधान वेदों के प्रमाण देकर ही किया जिससे गौतम का गर्व चूर हो गया और वे उसी समय अपने शिष्यों सहित दीक्षित हो गए। अनुक्रम से ११ प्रधान वेद-ज्ञाताओं ने महावीर से दीक्षा ग्रहण की। यही शिष्य उनके ११ गणवर कहलाए। उनमें इन्द्रभूति प्रथम गणधर थे।
महावीर से जो भी दोक्षा ग्रहण करता था उसे कुछ समय पश्चात् केवलज्ञान हो जाता था, किन्तु गौतम ही एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें महावीर के समय तक कैवल्य की प्राप्ति नहीं हो सकी थी। इसका कारण था महाबीर के प्रति उनका राग-भाव । ७२ वर्ष की आयु में महावीर ने गौतम को निकटवर्ती ग्राम में उपदेश के लिए भेज दिया। उनके जाने के पश्चात् ही महावीर को निर्वाण प्राप्ति हो गई। महावीर के निर्वाण को जानकर गौतम को अत्यधिक दुःख हुआ। वे सोचने लगे कि भगवन् ने मुझे जान बूझकर अपने से अलग भेज दिया होगा कि कहीं मैं बालक के समान हठ करके उनसे कैवल्य न मांग बैठे। उन्होंने सच्चा स्नेह नहीं किया। इस प्रकार विलाप करते हुए उनके ध्यान में यह बात आई कि महावीर तो वीतरागी थे, उनसे राग-भाव कैसा? और इस ज्ञान के पश्चात् ही गौतम केवली हो गए । गौतम ने ५० वर्ष तक गृहस्थ-जीवन बिताया। ३० वर्ष तक वे संयमित अवस्था में रहे और १२ वर्ष तक केवली रूप में विचरण किया। इस प्रकार ९२ वर्ष की अवस्था में उन्होंने मोक्ष प्राप्ति की।
कथा का यही सारांश है। कवि ने अनेक उपमाओं एवं उत्प्रेक्षाओं के द्वारा चरितनायक की विशिष्टताओं का दिग्दर्शन कराया है। प्रस्तुत रचना में काव्य के सभी गुण वर्तमान है । प्रकृति चित्रण भी कवि की प्रतिभा का परिचायक है । उदाहरणार्थ
"जिम सहकारिहिं कोयल टहकउ । जिम कुसुमह वनि परिमल बहकउ, जिन चंदनि सोगन्ध विधि । जिम गंगाजल लहरिहिं लहकइ । जिम कणयाचल सेजिहि झलकह ति तिम गोयम सोभागनिधि ॥"
१. जैन गुर्जर कवियों, मोहनलाल दलीचन्द देसाई, भाग १; पृ० १५ ।
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