Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 7
कुछ अच्छी है जो बारहवीं शती की है और एक के शिलाफलक की पपड़ी उघड़ गई है। यह दसवीं शती की है।'
__ मथुरा के कंकाली टीला से ऋषभनाथ की एक सुन्दर प्रतिमा प्राप्त हुई है । इसके केश धुंघराले हैं, उष्णीष अंकित है और जटाएँ स्कन्धों पर लटक रहीं अंकित है। इसके आसन पर धर्मचक्र, सिंहासन के सिंह, वृषभ लाञ्छन और यक्ष-यक्षी शिल्पित है ।
देवगढ़ (म० प्र०) में तीर्थंकर ऋषभनाथ की जटाजूट युक्त अनेक प्राचीन मूर्तियाँ हैं। उनमें से एक मूर्ति विशेष उल्लेखनीय है। इस मूर्ति का विन्यासयुक्त जटाजूट अंकित कर पांच-पांच जटाएँ स्कन्धों पर से भुजाओं पर कुक्षि के नीचे तक शिल्पित हैं तथा दस-दस, लम्बी जटाएँ कन्धों के पीछे से हवा में लहराती हुई अंकित हैं, जिनसे एक बड़ा अर्ध-प्रभावल-सा बन गया है (सिर के पीछे एक कलायुक्त प्रभावल भी) है। प्रत्येक जटा का अग्रभाग मुड़ा हुआ है।
ऋषभनाथ के बाद सबसे अधिक जटाजूट बाहुबलि की प्रतिमा के प्राप्त होते हैं । इसके अतिरिक्त तीर्थंकरों में अभिनन्दननाथ', चन्दप्रभु, नेमिनाथ और पार्श्वनाथ की प्रतिमाओं के जटाजूट भी कहीं-कहीं दृष्टिगत होते हैं ।
१. जैन जर्नल, १९८३ । २. राज्य संग्रहालय, लखनऊ, ACC No. 16.0.178. ३. देवगढ़ के चौथे मन्दिर की पश्चिमी भित्ति पर, देवगढ़ की जैन कला प्लेट-६९।। ४. बादामी गुम्फा मन्दिर । ५. डॉ. भागचन्द्र जैन, भागेन्दु-देवगढ़ को जैनकला : एक सांस्कृतिक अध्ययन,
प्लेट-५८, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, १९७४ । ६. खण्डगिरि की बाराभुजी गुम्फा । ७. देवगढ़ मन्दिर संख्या १३ के गर्भगृह में । ८. खण्डगिरि की बाराभुजी गुम्फा, भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ भाग-२, चित्र
नं० ७१, भा० दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, बम्बई, १९७५ ।
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