Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
________________
186
Vaishali Institute Research Bulletin No. 7
जटाएँ कन्धों पर लटक रही है। इसके पाश्वों में चंवरधारी, सिर के पीछे प्रभामण्डल, उसके दोनों ओर मालाधारी देव और आसन पर धर्मचक्र अंकित है । उपरोक्त दोनों मूर्तियां प्रारम्भिक गुप्तकाल की मानी गई है।
भागलपुर के श्रोचम्पापुर दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र, नाथनगर में तीर्थंकर आदिनाथ की एक मूर्ति कायोत्सर्ग-मुद्रा में है । उसको वृत्तबन्ध जटा-जूट बहुत कलायुक्त है । इसके केश पहले ऊपर को निकाले गये हैं, फिर ऊपर से नीचे को आकर पीछे को किये हुए अंकित हैं । तीनतीन जटाएँ कन्धों पर लटक रहीं हैं । अजयकुमार सिंह ने लिखा है कि इस मूर्ति के जटा-जूट सज्जा की कला गुप्त व गुप्तान्तकालीन है ।
अकोटा से प्राप्त प्रतिमाओं में एक कायोत्सर्ग:मुद्रा में ऋषभनाथ की प्रतिमा महत्वपूर्ण है । इसमें तीर्थकर आयताकार पादपीठ के मध्य में खड़े हैं । पादपीठ पर दोनों सिरों पर कमल अंकित है। जिसमें एक पर यक्ष तथा एक पर यक्षी की मूर्ति है । बीच में सीधे धर्मचक्र पर ऋषभनाथ की मूर्ति है और धर्मचक्र के दोनों ओर हरिण हैं। ऋषभनाथ के रूप में तीर्थकर की पहचान उनके स्कन्धों पर लटकती हुई केशराशि से हुई है। इस प्रतिमा पर अंकित लेख से ज्ञात हुआ है कि यह प्रतिमा उत्तर गुप्त-युग लगभग ५४०-५० ईसवी की है।
जयपुर के चारमूला गांव से एक तीर्थंकर ऋषभनाथ की मूर्ति मिली है जो जिला संग्रहालय, जयपुर में रखी है। यह मूर्ति योगमुद्रा में है । इस मूर्ति के केश तीन परिधियों में सुन्दर ढंग से संवार कर एक मनोहारी जटा-मुकुट शिल्पित किया गया है । कुछ जटाएँ कंधों पर लटक रहीं हैं। इस प्रतिमा के आसन पर वृषभ चिह्न अंकित है। नीचे दो सिंह और उनके बीच में चक्रेश्वरी गरुण पर सवार ललितासन में है। यह प्रतिमा सात से नौवीं शती के बीच की है।
राजगिर के नैयारगिरि पर्वत पर उत्खनन से प्राप्त एक प्राचीन जैन मन्दिर में भगवान् ऋषभनाथ की जटा-जूटयुक्त पद्मासन मुद्रा में दो पाषाण-मूर्तियां विद्यमान हैं। इनमें से एक मन्दिर के मुख्य गर्भगृह में है, जिसके केशों को पहले ऊपर की ओर सवार कर फिर सुन्दर जटा-मुकुट और जटा-जूट अकित किया गया है। कुछ जटाएँ कन्धों पर लटक रहीं हैं। कमलासन के नीचे बीच में चक्र है, चक्र के दोनों ओर चक्राभिमुख एक-एक वृषभ अंकित है । आसन पर उत्कीणित एक लेख से ज्ञात हुआ है कि यह मूर्ति आठवीं शताब्दी की है।
राजगृह की दूसरी मूर्ति उसी प्राचीन मन्दिर के भूगृह में है। इस मूर्ति के केश पीछे को कंघी किए हुए के अंकित हैं और जटाएं स्कन्धों पर लटक रही हैं। कमलासन के नीचे सिंहासन के दो सिंह, उनके नीचे बीच में धर्मचक्र और धर्मचक्र को सिर से वहन करते हुए दो
१. जैन जर्नल, जनवरी १९८४, "मोर स्कलप्चस माम भागलपुर"। २. बड़ौदा संग्रहालय । ३. जैनकला एवं स्थापत्य, भाग १, पृ० १४४ । ४. जैन जर्नल, जनवरी १९८२ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org