Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
________________
बौद्ध वाङ्मय में अम्बपाली
डॉ. सुरेन्द्रनाथ दीक्षित अम्बपाली गौतम बुद्धकालीन उन विलक्षण बौद्ध भिक्षुणियों में थी जिसके प्रातिभव्यक्तित्व, कलाप्रेम, सौन्दर्यचेतना, अस्मिता और तीव्र वैराग्य भाव ने न केवल उस युग के लोकमानस को आनन्दित और उद्वेलित कर दिया था, अपितु इस वीसवीं सदी में भी बौद्धधर्म के पुनरुत्थान की मंगलवेला में अम्बपाली के व्यक्तित्व और चरित्र को लक्ष्य कर न जाने कितने उपन्यासों, नाटकों, कहानियों, नृत्यनाटिकाओं और गीतिनाटयों की रचना हुई है। लगता है अम्बपाली के व्यक्तित्व में कुछ ऐसी विलक्षणता और मोहकता थी, जिसने कलाकारों के हृदय की अतलस्पर्शी गहराई को स्पन्दित किया और सृजन के लिए अनुप्रेरित भी किया।
हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अम्बपाली या आम्रपाली को लक्ष्य कर साहित्यिक कृतियों का सृजन हुआ है, उनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय है-रामरतन भटनागर का उपन्यास 'अम्बपाली' (१९३९), रामवृक्ष बेनीपुरी का नाटक 'अम्बपाली' (१९४८), रामचन्द्र ठाकुर का उपन्यास 'आम्रपाली' (१९४५, गुजराती), आचार्य चतुरसेन शास्त्री का उपन्यास 'वैशाली की नगरवधू' (१९४९), धूमकेतु कृत 'आत्मा के आंसू' (गुजराती) अथवा 'नगर सुन्दरी और वैशाली', रामचन्द्र दास विरचित 'उत्तरबुद्ध चरित' (संस्कृत महाकाव्य), जयशंकर प्रसाद विरचित 'अजातशत्रु की आम्रपाली', जगदीशचन्द्र माथुर विरचित 'वैशाली लीला' को अम्बपाली, राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह का गीतकाव्य 'अम्बपाली' (१९५४), डॉ. सुरेन्द्र मोहन प्रसाद का 'विजयिनी' कान्य रूपक, रमाकान्त पाठक की आम्रपाली, पोद्दार रामावतार अरुण की आम्रपाली (महाकाव्य), बेनीपुरी के 'तथागत' नाटक की अम्बपाली तथा टंडन की फिल्म 'आम्रपाली', उपेन्द्र महारथी एवं अलभेलकर की अम्बपाली सम्बन्धी मर्मस्पर्शी चित्र रचनाएं और स्वप्नसुन्दरी की नृत्यनाटिका (७-४-१९८६) आम्रपाली आदि विशिष्ट कृतियों के अन्तरंग विश्लेषण से दो तथ्यों की स्पष्ट झलक मिलती है
(१) अम्बपाली बुद्ध की समकालीन ऐसी नारी पात्र थी जिसे उस युग की नारियों में सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई। यह नहीं कि उस युग में वही एकमात्र नगर वधू या वेश्या थी, जिसने अपने परम्परागत . चरित्र के प्रतिकूल भोगवासना का जीवन त्याग, तपस्या, वैराग्य और सेवा का व्रत ओढ़ लिया था, बल्कि उस युग में अभयमाता और विमला आदि गणिकाएँ और कुलीन महिलाएं थीं, जिन्हें बुद्ध, धर्म और संघ की छाया में शरण मिली पर अम्बपालो या आम्रपाली जैसी ख्याति ने किसी अन्य महिला को मंडित नहीं किया ।
* भू० पू० रोडर, हिन्दी विभाग, गन्नीपुर, मुजफ्फरपुर ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org