Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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___Vaishali Institute Research Bulletin No. 7
टीकाकार के रूप में भी कुछ कायस्थ पण्डितों के नाम मिलते हैं, उनमें से अमरसिंह कायस्थ भट्टारक कमलकीत्तिकृत तत्त्वसार के एवं पं० गोविन्द पुरुषार्थानुशासन नामक ग्रन्थ के टीकाकार के रूप में प्रसिद्ध है ।।
त्रिभुवन-स्वयम्भू ने लिखा है कि स्वयम्भू ने एक अपभ्रंश-व्याकरण की भी रचना की है किन्तु वह अभी तक अनुपलब्ध है। त्रिभुवन-स्वयम्भू ने उसके विषय में लिखा है कि "अपभ्रंश रूपी मत्तमातंग तभी तक स्वच्छन्दतापूर्वक विचरण करता है, जब तक कि स्वयम्भू का व्याकरण रूपी अंकुश उसके सिर पर नहीं आ पड़ता।" संभवतः इसी व्याकरण ग्रन्थ ने परवर्ती अपभ्रंश-काव्य-रचना को परिमार्जित करने में मार्गदर्शन किया होगा ।
जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि स्वयम्भू के पूर्व भी चउमुह, द्रोण, ईसान तथा जोइंदु जैसे कवि अपभ्रंश में काव्य-रचना कर चुके हैं। उनके उपलब्ध उद्धरणों तथा जोइन्दु की रचनाओं की सुगठित प्रौढ़ अपभ्रंश भाषा को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि स्वयम्भू के पूर्व भी कोई अपभ्रंश-व्याकरण लिखा गया होगा, जिसने चउमुह आदि कवियों को उनके साहित्य-प्रणयन में उनका मार्ग-दर्शन किया होगा। वस्तुतः यह एक महत्वपूर्ण विचारणीय प्रश्न है । इस पर गम्भीर शोध-खोज की आवश्यकता है ।
स्थानाभाव के कारण यहाँ अन्य अधिक कवियों का परिचय दे पाना सम्भव नहीं है किन्तु हमारा विश्वास है कि स्वयम्भू, त्रिभुवन स्वयम्भू, नयनन्दि, पुष्पदन्त, धवल, धनपाल एवं रईधू आदि के द्वारा उल्लिखित कवियों की नामावली से १०० से अधिक ऐसे कवि एवं लेखक है, जिनपर अभी तक कोई सम्यक् विचार नहीं हुआ है। उस दिशा में भी यदि प्रयास किया जाय, तो महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री प्रकाश में आ सकती है ।
मध्यकालीन जैन कवियों ने प्रासांगिक एवं प्रकीर्णक रूप में तो ऐतिहासिक सामग्री को प्रस्तुत किया ही, अनेक स्वतन्त्र ऐतिहासिक काव्यों की भी उन्होंने रचनाएँ की हैं । ये काव्य एक ओर रोचक, सरस एवं मार्मिक होने के साथ-साथ काव्य के शास्त्रीय गुणों से समन्वित हैं । और दूसरी ओर उनके कवियों ने अपने आश्रयदाता राजाओं या सामन्तों से सम्बन्धित ऐतिहासिक सामग्री भी प्रस्तुत की है । इस विधा के काब्यों में चालुक्य, राष्ट्रकूट एवं चौहानवंशी राजाओं के तिथिक्रम, उनके प्रशासन सम्बन्धी कार्यों, राष्ट्र-रक्षा-हेतु युद्धों, राज्य के विकास सम्बन्धी कार्यों, साहित्य-संरक्षण एवं साहित्यकारों को दिए गये आश्रयदान, स्वयं सम्मान आदि पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। इनमें से कुछ काव्य-ग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें राजनैतिक, भौगोलिक अथवा साहित्यिक अथवा तीनों प्रकार को ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध है। ऐसे ग्रन्थों का पूर्ण परिचय स्थानाभाव के कारण यहाँ सम्भव नहीं है। अतः यहां उनका केवल नामोल्लेखमात्र ही किया जा रहा है।
ऐसे काव्यों में श्रुतावतार (इन्द्रनन्दि १२वीं सदी), परिशिष्ट-पर्व एवं कुमारपालचरित (हेमचन्द्र १३वीं सदी), वसन्तविलाप्त (बालचन्द्र १३वीं-१४वीं शताब्दो), धर्माभ्युदयकाव्य
१. देखिये परिषद्-पत्रिका ९।१।२५ ।
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