Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 159
________________ 148 Vaishali Institute Research Bulletin No. 1 सारी वैशाली भी दे दो, तब भी बदले में यह सौभाग्य तुम्हें न दूंगी। यह तो अमूल्य सम्मान है मेरा।" (स च मे अय्यपुता वेपालि साहार दज्जप्याय, नेव दज्जा हं तं भत्तं ति)। दूसरे दिन अम्ब्रपाली ने स्वयं भोजन बना, बुद्ध और भिक्षुसंघ को सादर बुला स्वयं स्वादु सुगंधित भोजन परोसकर संतृप्त किया । भोजनोपरांत शास्ता को ऊँचे आसन पर बिठा अम्बपाली उनके चरणों में माथा टेकती हुई बोली, "भगवन् यह महल और आम्रवाटिका भिक्षुसंघ को विनम्रतापूर्वक अर्पित करती हूँ।" बुद्ध ने उसके इस महाय॑दान को स्वीकार किया । उसे पुनः उपदेशामृत पान कराते हुए इस क्षणभंगुर संसार के प्रति वैराग्यभाव जगाकर बुद्ध उठ गए। वैशाली की यह उनकी अतिम यात्रा थो। ___ 'महापरिनिर्वाणसूत्र' के अतिरिक्त अन्य बौद्ध स्रोतों में भी अम्बपाली के संबन्ध में स्फुट सूचनाएँ उपलब्ध है । बौद्ध धर्म के पवित्र थेर ग्रंथों में 'सूतपिटक' का पांचवा भाग है-'खुद्दक निकाय'। इस निकाय में ही 'थेरेगाथा' और 'थेरीगाथाओं' का संकलन है । 'थेरी गाथा में तेहत्तर भिक्षुणियों के पाँच सौ बाइस पद संगृहीत हैं। इनमें भिक्षुणी अम्बपाली द्वारा रचित पदों की संख्या उन्नीस है। इन थरेथेरो गाथाओं पर पांचवी सदी के प्रसिद्ध बौद्ध टीकाकार धर्मपाल ने 'धमार्थदीपनी' नाम की टीका की, अपनी टीका में गाथाओं के रचयिता थरे-थेरी के पूर्व जन्म और वर्तमान जन्म की कथा जातक कथाओं की शैली में प्रस्तुत की है। स्वभावतः भिक्षुणी अम्बपाली का जीवनवृत्त भी दिया गया है । उसके अनुसार अम्बपाली अनगिनत पुण्यों के बल से शिखि बुद्ध के समय उत्पन्न हुई। एक दिन देव मंदिर में पूजा अर्चना के लिए भिक्षुणियों की शोभा यात्रा जा रही थी तो एक अर्हत थेरी ने उसके सामने जल्दीबाजी में दे वमंदिर के आंगन में थूक दिया। उस पर दृष्टि पड़ते ही अम्बपाली क्रोधावेश में बोल पड़ीकिस वेश्या ने इस स्थान को थूक कर अपवित्र कर दिया है ! इन आवेशपूर्ण शब्दों के कारण गणिका के रूप में पुनः उसने जन्म ग्रहण किया। अगले जन्म में उसने राजकन्या के रूप में भी जन्म ग्रहण किया। सौन्दर्य-संपन्न होने के लिए उसने कठोर आराधना की । अनेक जन्मों के पुण्यबल से उसने अंतिम वार वैशाली में जन्म ग्रहण किया एक आम्रवाटिका की शीतल स्निग्ध छाया में । यह उसका अंतिम जन्म था। आम्रवाटिका के माली ने उस परित्यक्त बालिका का पालन-पोषण किया, इसीलिए 'आम्रपाली' या 'अम्बपाली' के रूप में अपनी दिव्य सुन्दरता, कला के प्रति पूर्ण समर्पण और अंततः अपनी तीव्र वैराग्य भावना के कारण वह जगद्विख्यात हुई। उसकी अपूर्व सुन्दरता को भोगने की चरम स्पर्द्धा थी वैशाली गणतन्त्र के युवकों में । स्पर्धा और युद्ध की स्थिति से मुक्ति पाने के लिए वैशालो की गणिका के रूप में प्रतिष्ठित हुई वह और वह जनभोग्या बनी। बौद्ध धर्म को स्वीकार करने के बाद भी अम्बपाली में काव्य और कला के प्रति आकर्षण शायद शिथिल न हुआ। थेरी गाथा में संकलित इन उन्नीस गाथाओं में अपने अंगप्रत्यंग की सुकुमारता, स्निग्धता और लावण्य का जो विस्मय विमुग्धकारी मर्मस्पर्शी वर्णन किया है वह सौन्दर्यभाव में जितना ही मांसलव है वैराग्यभाव से भी उतना ही ओतप्रोत है। बारीकी से काव्यतत्वों की कसौटी पर उनकी समीक्षा करने पर मर्मस्पर्शी काव्यशैली के उत्तम उदाहरण लगते है । एक दो उदाहरण पर्याप्त है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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