Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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बौद्ध वाङ्मय में अम्बपाली
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कालकामयरवण्णसदिसा वेल्लितग्गा मुद्धजा अहुँ, ते जराय साणवाकसदिसा सच्च वादिवचनयअनजथा ॥२५२॥ वासितो व सुरभिकरंडको पुप्फपूरं ममुत्तमङ्गभु ।
तं जराय सस लोभगंधिकं सच्चवादि वचनयअनथा ॥२५॥ उसके भ्रमर से काले कुंचित केश जिसमें वेला के फूल गूंथे रहते थे, अब बूढ़ापा आने पर सन के से सफेद हो विखर गए हैं । खरगोश के रोओं की तरह उनमें दुगंध निकल रही है । आँखों में न वह चमक है, न देह में वह मनमोहनी आभा । अब गले में कोयल की सी वह मिठास भी कहाँ है ? सुडौल पुष्ट वक्ष लटक गए है, अंग-अंग झुर्रियों से भरा है । पुष्ट मांसल सर्पिल जांघ बाँस के तने की तरह कैसी पतली होकर सूख गयी है। काल ने शरीर की उस मनभावन छवि को, देह की कांति को सोख लिया है। उसकी वह कांचन सी देहलता ढलती आयु में क्षीण, दुर्बल, अशोभनीय, असंख्य रोगों का पुराना घर रह गया है, चारों ओर से ढहना, उनमनाना ।" आह ! - थेरी अम्बपाली की इन गाथाओं में भावों के वैपरीत्य का विधान बड़ा ही मर्मस्पर्शी
और हृदयद्रावक है । इन गाथाओं का लक्ष्य निश्चय ही उस युग और बाद की भिक्षु-भिक्षुणियों की पीढ़ियों को घर छोड़ प्रव्रज्या ग्रहण कर सत्य, शांति और ज्ञान की तलाश करते हुए परम विश्रान्ति का अमृतपद प्राप्त करना था। जैसा कि रीज डेविड्स ने लिखा भी है कि-- इन गीतों में सदियों की करुणा-विगलित नारी भावना, सौन्दर्य चेतना और जीवन की क्षणभंगुरता में रची बसी हुई ये छोटी-छोटी गाथाएँ थेरियों के जीवन की संवेदना, विषाद और परमविश्रांति की भावना से ओतप्रोत है। .."गाथाओं की रचना करने वाली चारगणिका थेरियों में अम्बपाली एकमात्र विख्यात ऐतिहासिक व्यक्तित्व है। उसकी रचना का स्वरूप गीति काव्यात्मक है। व्यक्तित्व की संवेदनशील अनुभूति की अभिव्यक्ति में विलक्षण प्रांजलता है। थेर-थेरी गाथाएं कितनी लोकप्रिय हो गई बौद्ध संघ में कि उन्हें त्रिपिटकों में संगृहीत किया गया। बौद्ध शिक्षा केन्द्रों के बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों में वैराग्यभाव को उद्दीप्त करने के लिए सदियों तक वेदमंत्रों की तरह उन्हें कंठान किया जाता रहा। जो भी हो, थेरी अम्बपाली के गीतों से उसकी अनिद्य सुंदरता और उसकी करुण नश्वरता के साथ उसकी अनूठी काव्यशैली का स्पष्ट परिचय मिलता है । वह अपने समय की अद्वितीय सुंदर नारी थी, काव्यकला में अत्यन्त निपुण थी और अंततः बुद्ध की शरण में आने पर त्याग और वैराग्य में भी अनुपम हो गई वह भिक्षुणी !
"विनयवस्तु' नामक ग्रंथ (गिलगिट पांडुलिपि द्वितीय भाग) के अनुसार अम्बपाली ने विज्जि लोकतंत्र की मर्यादा की रक्षा के लिए विवशतापूर्ण परिस्थिति में इस सम्मान योग्य गणतंत्र की गणिकापद को स्वीकार किया था। पर उसके साथ निम्नलिखित पाँच शर्ते भी थीं
समयतोऽहं गणभोग्या भवामि यदि मे गणः पंच वराननुप्रयच्छति (पाँच शर्तों को पूरा करने पर ही गण की भोग्या होऊंगी)।
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