Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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बौद्ध वाङ्मय में अम्बपाली
191 इससे यह प्रमाणित हो जाता है कि आम्रपाली या अम्बपाली बुद्धकालीन ऐतिहासिक पात्र थी। वैशाली गणतन्त्र की निर्वाचित गणिका थी। रूप-यौवन सम्पन्न इस गणिका के पास न केवल वैशाली गणतन्त्र के ही रूप और कला के प्रेमी और उपासक आते थे, अपितु उसकी कीति सुदूर राजगृह तक फैल गयी थी, जिसके फलस्वरूप मगध सम्राट् बिम्बिसार तक ने उस पर अपने को न्योछावर कर दिया था। गौतम बुद्ध की अन्तिम यात्रा में वह बुद्ध और धर्म की शरण गई, पर वह असाधारण क्षमताशाली बौद्ध भिक्षुणी सिद्ध हुई, जिसने अपनी उन्नीस गाथाओं में अपने चरमसौन्दर्य, शरीर की नश्वरता और जीवन मर्म को यों ढाल दिया है कि उसके उन करुणाविगलित जोवन के साथ के आलोक से दोप्त उन पदों को पढ़कर कौन भला क्षणभर के लिए ही सही, वैराग्य और प्रव्रज्या के लिए, अमृत पद की प्राप्ति के लिए उन्मुख और उत्प्रेरित नहीं हो उठता ।
एदिसो अहुअयं समुक्सयो जज्जरो बहुदुक्खानामालयो ।
सोऽवलेय पतितो जरागतो सच्चवादि वचनं अनप्रथा ॥ थेरीगाथा-२६० बीसवीं सदी में विभिन्न भारतीय भाषाओं में अम्बपालो की तीव्र रूपज्वाला, उसकी गौरवमयी गुण गरिमा, बौद्धधर्म में दीक्षा और वैराग्य और साधना की चरम सार्थकता को दृष्टि में रख कर जो विपुल साहित्य लिखा गया है, उस पर अम्बपाली के तत्कालीन जीवन पर आधुनिक युग की विसंगतियों और तज्जनित गहरी पीड़ा और द्वन्द्व से भी उसके जीवन को महिमा मंडित किया गया है । फिर एक साथ ही उसके जीवन में सम्राट बिंबिसार और उनके पुत्र अजातशत्रु तक को उतारा गया है। इसके पीछे एक ही तथ्य है कि साहित्य स्रष्टाओं ने तयुगीन अम्बपाली को आधुनिक सन्दर्भ में भी देखा है । इस प्रकार अम्बपाली एक ऐतिहासिक पात्र है जो अतीत में रूपयौवन सम्पन्न परम योग्य गणिका थी, अपने पुत्र विमल कौंडिन्य और तथागत की प्रेरणा से भिक्षुणी हो गई, घर छोड़, बेघर हो साधना और सेवा में अपने को उत्सर्ग कर दिया, तब भी उसकी सृजनमिता उत्तरोत्तर उदार होती गई है। क्षणभंगुर सौन्दर्य से चिर-सौन्दर्य, अमृत पद पर पहुँचने के लिए उसने अमृत पदों की रचना की, जिसके प्रत्येक पद में सत्य ज्योतिस्वरूप अभिताभ बुद्ध का स्मरण है, अम्बपाली का जीवित कलात्मक इतिहास आज भी यों ही सम्पूर्ण भावना को आनन्दित और उद्वेलित करता है, जीवन की शांति और पवित्रता की प्राप्ति के लिए -
कंचनस्सफलकं व सुममटुं सोभते सुकामो पुरे मम ।
सो बलिहि सुखुमाहि ओतनो सच्चवादि वचनं अनचथा ॥ २६६ ॥ अर्थात्-सुन्दर परिष्कृत स्वर्णफल के समान मेरी देहलता चमकती थी, सोहती थी। वहो वृद्धावस्था में झुर्रियों से भरी हुई है । सत्यवादी बुद्ध के वचन कभी मिथ्या नहीं होते।
सन्दर्भ ग्रन्थों की सूची १. महपरिनिर्वाण सुत्त। २. बुद्धचर्या : राहुलसांकृत्यायन ।
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