Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
________________
95
बौद्धन्याय और गौतमीय न्याय में हेत्वाभासों का स्वरूप असाधारणा नैकान्तिक है। जैसे 'शब्द नित्य है, शब्द होने से', यहाँ शब्दत्व हेतु सब नित्य तथा अनित्य वस्तुओं में न रहकर केवल शब्द में ही रहता है । जिस हेतु का न कोई अन्वय दृष्टान्त है और न व्यतिरेक दृष्टान्त है वह सपक्ष-विपक्षरहित हेतु अनुपसंहारी कहलाता है। जैसे सब अनित्य है, प्रमेय होने से । यहाँ सबको ही पक्ष हो जाने से प्रमेयत्व हेतु का कोई दृष्टान्त शेष नहीं रहता है ।
विरुद्ध-जिस हेतु की व्याप्ति साध्याभाव के साथ होती है वह विरुद्ध है । जैसे शब्द नित्य है, कृतक होने से । यहाँ कृतकत्व हेतु की व्याप्ति नित्यत्व के साथ न होकर अनित्यत्व के साथ है।
सत्प्रतिपक्ष-जिस हेतु के साध्याभाव का साधक कोई दूसरा हेतु पाया जाता है वह सत्प्रतिपक्ष है । जैसे शब्द नित्य है, श्रावण होने से । इस हेतु का प्रतिपक्ष यह है-शब्द अनित्य है, कार्य होने से । अतः श्रावणत्व हेतु सत्प्रतिपक्ष ।
असिद्ध के तीन भेद हैं-आश्रयासिद्ध, स्वरूपासिद्ध और व्याप्यत्वासिद्ध ।
आश्रयासिद्ध-जिस हेतु का आश्रय असिद्ध हो वह आश्रयासिद्ध कहलाता है । जैसे आकाश कमल सुगन्धित है, कमल होने से । यहाँ हेतु का आश्रय आकाश कमल असिद्ध है। अतः अरविन्दत्वहेतु आश्रयासिद्ध है ।
. स्वरूपासिद्ध-जिस हेतु का स्वरूप असिद्ध होता है वह स्वरूपासिद्ध है। जैसे शब्द अनित्य है, चाक्षुष होने से । शब्द श्रावण है, चाक्षुष नहीं । अतः चाक्षुषत्व हेतु स्वरूप से ही असिद्ध होने के कारण स्वरूपासिद्ध है।
व्याप्यत्वासिद्ध-उपाधि सहित हेतु को व्याप्यत्वासिद्ध कहते हैं । जो साध्य का व्यापक होकर साधन का अव्यापक होता है वह उपाधि कहलाती है। जैसे पर्वत धूमवान् है, वह्निमान् होने से । यहाँ आर्दैन्धनसंयोग उपाधि है । इस अनुमान में धूम साध्य और वह्नि साधन है । जहाँ धूम होता है वहाँ आन्धन संयोग होता है जहाँ वह्नि होती है वहाँ आर्द्रन्धन संयोग नहीं होता है, जैसे अयोगोलक में । इस प्रकार आर्दैन्धन संयोग धूम का व्यापक है और वह्नि का अव्यापक है । अतः बह्निमत्व हेतु सोपाधिक होने से व्याप्यत्वासिद्ध है ।
बाधित-जिस हेतु के साध्य का अभाव प्रत्यक्षादि प्रमाण से निश्चित होता है वह बाधित कहलाता है। जैसे वह्नि अनुष्ण है, द्रव्य होने से । यहाँ वह्नि में अनुष्णत्व प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org