Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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हरिभद्रसूरिकृत अष्टक-प्रकरण : एक मूल्यांकन
129 हरिभद्र अष्टक-प्रकरण का कई स्थानों से प्रकाशन हुआ है । अब तक निम्न संस्करणों की जानकारी मिली है :१. यशोविजय के अष्टक प्रकरण के साथ आगमोदय समिति, सूरत से १९१८ में
मूल प्रकाशित । २. भीमसी मानेक द्वारा गुजराती व्याख्या के साथ बम्बई से १९०० में प्रकाशित । ३. मनसुख भागु भाई द्वारा जिनेश्वरसूरि की संस्कृत व्याख्या के साथ अहमदाबाद
से सं० १९६८ में प्रकाशित । ४. जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर से सं० १९६८ में मूल ग्रन्थ प्रकाशित
(ग्रन्थांक १५)। ५. अभयदेवसूरि की संस्कृतिवृत्ति एवं जिनेश्वरसूरि की संस्कृत व्याख्या के साथ
जैन ग्रन्थ प्रकाशिक समिति, राजनगर से सन् १९३७ में प्रकाशित ।' ६. हरिभद्रसूरि के षड्दर्शनसमुच्चय के साथ सूरत से १९१८ में प्रकाशित ।' ७. हरिभद्र ग्रन्थ-संग्रह के साथ १९३८ में राजनगर से प्रकाशित ।
अष्टक-प्रकरण के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी मिलती है। इस ग्रन्थ की विषयवस्तु एवं विभिन्न अष्टकों के अनुवाद व टीका आदि के सम्बन्ध में हिन्दी या अंग्रेजी में कोई मूल्यांकन देखने को नहीं मिला । इस ग्रन्थ के टीकाकार जिनेश्वरसूरि ने सं० १०८० में जो प्रकरण के श्लोकों को संस्कृत टीका की है, वह विषय को पूर्णतया स्पष्ट करने वाली है । इस टीका में जो प्राकृत उद्धरण दिये गये है, उनका संस्कृत अनुवाद अभयदेवसूरि ने अपनी वृत्ति के साथ कर दिया है। इस टोका पर विचार करने के पूर्व अष्टक-प्रकरण के ३२ प्रकरणों की संक्षिप्त विषयवस्तु को यहाँ देना उपयुक्त होगा।
विषय वस्तु १. महादेव अष्टक
जिसके संक्लेश को उत्पन्न करने वाला राग सर्वथा नष्ट हो गया है, प्राणियों में अग्नि की भांति (तापदायक) द्वेष नहीं है । सम्यग्ज्ञान को नष्ट करनेवाला एवं
१. वेलणकर, एच० डी०, जिनरस्नकोश, पृष्ठ १८। । २. बी० एल० इन्स्टीटयूट आफ इण्डालाजी, दिल्ली के पुस्तकालय में उपलब्ध । ३. विन्टरनित्ज; हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर, पार्ट द्वितीय, पृ० ५६१, ५८३ । ४. (क) अभिधान राजेन्द्र कोष, प्रथम भाग, अहमदाबाद, १९८६, पृ० २४०
(पुनर्मुद्रण)। ___(ख) जैन, हीरालाल; भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० ९१ ।
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