Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 7
उपशम एवं त्याग के परिणाम आदि होने पर ही भक्तिपूर्वक प्रत्याख्यान ग्रहण करना चाहिये । वीर्यभाव के न होने पर, क्लिष्ट कर्मों के उदय होने पर भी द्रव्य प्रत्याख्यान किया जा सकता है | किन्तु भाव- प्रत्याख्यान तो जिन भक्ति-पूर्वक एवं वैराग्य भाव से ही ग्रहण करना चाहिये । तभी वह सम्यकचरित्र का साधक एवं मुक्ति का साधन हो सकता है |
९. ज्ञान अष्टक
महर्षियों ने उसे ज्ञान कहा है जो विषय को प्रतिभासित करता है, आत्म-स्वभाव को जानता है एवं तत्व की अनुभूति करता है ।" ऐसे सम्यक् ज्ञान से विष, कण्टक, रत्न आदि विभिन्न पदार्थों के स्वरूप को जानकर आत्म-साक्षात्कार की अनुभूति की जा सकती है । तत्व के संवेदन से ज्ञानावरण कर्म में क्षीणता आती है । अतः श्रद्धापूर्वक ज्ञान की आराधना करनी चाहिये ।
१०. वैराग्य अष्टक
वैराग्य तीन प्रकार का कहा गया है - आर्तध्यान, मोहगर्भ तथा सद्ज्ञानसंगत | आर्तध्यान नामक वैराग्य प्रायः अनिष्ट वियोग के कारण से होता है । इससे उद्वेग, आत्मघात आदि की प्राप्ति होती है । अतः ऐसे वैराग्य से बचना चाहिये । आत्मा एक है, नित्य है, सर्वथा बद्ध है इत्यादि एकान्तिक मतों के मोह से जो वैराग्य होता है वह मोहगर्भ वैराग्य है । ऐसे वैराग्य से आत्मा जन्मान्तरों में अनेक कष्ट भोगता रहता है । तत्वों के यथार्थ दर्शन से जो वैराग्य होता है वह सद्ज्ञानसंगत वैराग्य है । वही सिद्धि का परम साधन है ।
११. तपोविचार अष्टक
कुछ लोग कहते हैं कि तप दुःखात्मक ही होता है, उनका ऐसा कहना ठीक नहीं । क्योंकि दुःख आदि तो कर्मों के अधीन हैं, तप के कारण नहीं । जिस तप में मन इन्द्रिय आदि पर विजय पायी जाय वह तप आत्मा का अपकारी नहीं हो सकता । यद्यपि अनशन परीषहसहन आदि की शरीरपीड़ा तपश्चर्या में होती है किन्तु उससे आत्मा में निर्मलता आती हैं । अत: विशिष्ट ज्ञान, वैराग्य एवं समता व शमन भाव जहाँ होता है वह तप क्षायोपशमिक होता है और निर्बाध सुख को देने वाला होता है ।
१२. बाद अष्टक
परम ऋषियों ने शुष्कवाद, विवाद एवं धर्मवाद के भेद से तीन प्रकार के वाद कहे हैं । घमण्डी, क्रूर, मूढ़ एवं धर्म के द्वेषी व्यक्ति शुष्कवाद करते हैं । ऐसे अनर्थ को बढ़ाने वाले शुष्कवाद से बचना चाहिये । ख्याति को चाहने वाले कुछ व्यक्ति छल, जाति आदि तर्कों के द्वारा जो वाद करते हैं, उसे विवाद कहते हैं । ऐसे विवाद को नीतिपूर्वक शान्त करना चाहिये । बुद्धिशाली अपने शास्त्र के पूर्णं ज्ञाता लोग परलोक की प्रधानता से माध्यस्थ भाव
१. विषयप्रतिभासं तत्वसंवेदन चैव,
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चाहमपरिणतिमत्तथा । ज्ञानमाहुर्महिर्षयः ।। (९.१)
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