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८/तीर्थकर चरित्र
० दो का मिलन नहीं होता
मिलन हो सकता है। ० स्वयंबुद्ध होते हैं।
स्वयंबुद्ध के साथ बुद्ध
बोधित भी होते हैं। ० इनके गणधर होते हैं।
नहीं होते हैं। ० संख्या में जघन्य २० उत्कृष्ट १७० होते हैं। जघन्य २ करोड़ उत्कृष्ट
९ करोड़ होते हैं। ० अवगाहना-जघन्य ७ हाथ उत्कृष्ट
जघन्य २ हाथ उत्कृष्ट ___५०० धनुष्य होती है।
५०० धनुष्य हाती है। ० आयुमान-जघन्य ७२ वर्ष उत्कृष्ट
जघन्य ९ वर्ष, उत्कृष्ट १ ८४ लाख पूर्व
करोडं पूर्व ० उपसर्ग नहीं आते।
आ सकते हैं। ० चौतीस अतिशय होते हैं।
नहीं होते ० पेंतीस वचनातिशय होते हैं।
नहीं होते ० अमूक होते हैं।
मूक-अमूक दोनों होते हैं। ० चतुर्विध संघ की स्थापना करते हैं। नहीं करते ० पांच कल्याणक होते हैं।
नहीं होते ० दीक्षा स्वीकारते ही मनः पर्यव ज्ञान की कोई नियम नहीं __ प्राप्ति हो जाती है। ० गर्भ में भी अवधि ज्ञानी
कोई नियम नहीं ० चौदह महास्वप्न से जन्म लेते हैं
कोई नियम नहीं ० पूर्व जन्म में दो भव से नियमतः सम्यग् कोई नियम नहीं
दृष्टि होते हैं। 'तीर्थंकर' की मीमांसा
'तीर्थंकर' शब्द जैन साहित्य का पारिभाषिक शब्द है। आगमों व आगमेतर ग्रंथों में इसका प्रचुर मात्रा में उल्लेख हुआ है। जो तीर्थ का कर्ता होता है उसे तीर्थंकर कहते हैं । जो संसार-समुद्र से तिरने में योगभूत बनता है वह तीर्थ अर्थात् प्रवचन होता है। उस प्रवचन को साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका धारण करते हैं। उपचार से इस चतुर्विध संघ को भी तीर्थ कहा गया है। इनके निर्माता को तीर्थंकर कहा जाता है जिनके तीर्थंकर नामकर्म का उदय होता है वे तीर्थंकर बनते हैं। तीर्थंकर चौबीस ही क्यों ___ जैन भूगोल में अढ़ाई द्वीप क्षेत्र का वर्णन आता है (१) जंबू द्वीप (२) धातकी खंड (३) अर्धपुष्कर द्वीप । इन अढ़ाई द्वीप क्षेत्रों में पन्द्रह कर्म भूमि है
पांच भरत, पांच एरावत व पांच महाविदेह । इनके १७० भूभाग ऐसे हैं जहां