Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Sumermal Muni
Publisher: Sumermal Muni

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Page 214
________________ भगवान् श्री महावीर / १९५ श्रावस्ती में हालाहला कुंभारिण के घर पर रहकर तेजोलेश्या की साधना करने लगा । भगवान् द्वारा बताई गई विधि के अनुसार छह मास तक तप आयंबिल एवं आतापना करके गोशालक ने तेजो लेश्या प्राप्त कर ली। प्रथम परीक्षण के रूप में उसने कुएं पर प्रयोग पानी भरती हुई एक दासी पर किया । तेजोलेश्या प्राप्त होने के बाद गोशालक ने छह दिशाचरा से निमित्त शास्त्र पढ़ा जिससे सुख-दुःख लाभ-हानि, जीवन-मरण- इन छह बातों में सिद्ध वचन हो गया। तेजो लेश्या और निमित्त ज्ञान जैसी असाधारण शक्तियों से गोशालक का महत्त्व बढ़ गया, उसके अनुयायी बढ़ने लगे। वह अपने आजीवक संप्रदाय का प्रवर्तक- आचार्य बन गया. भगवान् जब वैशाली पधारे, वहां बालक उनको पिशाच समझकर सताने लगे । उस समय महाराज सिद्धार्थ के मित्र नरेश शंख उधर से गुजर रहे थे, उन्होंने उन बालकों को हटाया और महावीर को वंदन कर चले गये । वैशाली से वाणिज्य ग्राम की ओर चले। मार्ग में गंडकी नदी पार करने के लिए नौका पर चढ़े। नदी पार उतरने पर नाविक ने किराया मांगा, पर महावीर मौन रहे। इस पर गुस्से होकर नाविक ने गर्म बालू पर महावीर को खड़ा कर दिया। संयोगवश शंख नरेश का भानेज चित्र वहां आ पहुंचा। उसने नाविक को समझाया तब कहीं जाकर महावीर मुक्त हुए। वाणिज्य ग्राम में अवधिज्ञानी आनंद श्रावक (भगवान् के प्रमुख दस श्रावको में प्रमुख आनंद नहीं, यह पार्श्व परंपरा का था ) ने भगवान् को वंदन कर कहा- 'भगवन् ! अब आपको अल्पकाल में ही केवलज्ञान प्राप्त होगा ।" वाणिज्यग्राम से श्रावस्ती पधार कर चातुर्मास किया । साधना का ग्यारहवां वर्ष श्रावस्ती से विहार कर भगवान् सानुलट्ठिय सन्निवेश में पधारे। वहां सोलह की तपस्या की तथा इसमें भद्र प्रतिमा, महाभद्र व सर्वतोभद्र प्रतिमा स्वीकार की । इनमें विविध रूपों में ध्यान-साधना की । इस तपस्या का पारणा आनंद गाथापति की दासी द्वारा फेंके जाने वाले भोजन से किया। संगम के उपसर्ग दृढ़ भूमि में भगवान् पोलाश चैत्य में तेले की तपस्या कर अचित्त पुद्गल पर अनिमेष दृष्टि से ध्यान किया । इन्द्र ने अपने अवधि ज्ञान से भगवान् को देखा व उनके ध्यान, तपस्या व साधना का महिमा - बखान करते हुए कहा- 'भगवान् महावीर का धैर्य व साहस इतना गजब का है कि मानव तो क्या हम देवता भी उन्हें विचलित नहीं कर सकते।' सब देवों ने इन्द्र का अनुमोदन किया, पर संगम देव को यह बात नहीं जची । उसने कहा- 'देवेन्द्र ! ऐसी झूठ-मूठ प्रशंसा क्यों करते हो, मुझे छह महिने का

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