Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Sumermal Muni
Publisher: Sumermal Muni

View full book text
Previous | Next

Page 212
________________ भगवान् श्री महावीर/१९३ पर मौन रहने से उनकी पिटाई शुरू कर दी। भगवान् पार्श्व की परंपरा में पहले शिष्याएं रही विजया एवं प्रगल्भा नाम की परिव्राजिकाएं आई और समझा-बुझाकर छुड़ा दिया। सबने भगवान् से क्षमा याचना की। कूपिय सन्निवेश से भगवान् ने वैशाली की ओर विहार कर दिया। __गोशालक यह कहकर भगवान् से अलग हो गया- 'आपके साथ रहने से मुझे भी कष्ट पाना पड़ता है। आप मेरा कोई भी बचाव नहीं करते इसलिए मैं आपको छोड़कर अकेला ही विहार कर रहा हूं।' यह कहकर वह राजगृह की ओर रवाना हो गया। वैशाली में लोहार की कर्मशाला में अनुमति लेकर भगवान् ध्यानारूढ़ हो गए। कर्मशाला के एक कर्मकार-लुहार जो छह महीनों से अस्वस्थता के कारण आ नहीं पा रहा था, स्वस्थ होने पर शुभ दिन देखकर आया। सामने खड़े भगवान् को अपशकुन समझ हथोड़े से मारने दौड़ा तो उसके हाथ सहसा वहीं स्तंभित हो गये और उसका प्रहार विफल हो गया। वैशाली से विहार कर ग्रामक सन्निवेश में विभेलक यक्ष के स्थान में भगवान् ध्यानासीन हो गये । भगवान् के तपोमय जीवन से प्रभावित होकर यक्ष गुणोत्कीर्तन करने लगा। वहां से भगवान् शालिशीर्ष के रमणीय उद्यान में पधारे। “कटपूतना" नामक व्यंतर देवी ने भगवान् को बहुत कष्ट दिये। अंत में शांत होकर भगवान् से क्षमायाचना कर चली गई। बाद में भद्दिया नगरी में भगवान् ने पावस प्रवास किया। वहां उन्होंने चातुर्मासिक तप किया। गोशालक भी छह मास तक विविध कष्टों को भोगता हुआ पुनः भगवान् के चरणों में पहुंचकर साथ में रहने लगा। साधना का सातवां वर्ष भद्दिया नगरी से मगध की ओर विहार किया और चातुर्मास आलंभिया नगर में चातुर्मासिक तप के साथ संपन्न किया। यह वर्ष भगवान् के बिना उपसर्ग के बीता। साधना का आठवां वर्ष चातुर्मास समाप्ति पर विहार कर भगवान् कुण्डाक, मद्दना सन्निवेश व बहुसाल होते हुए लोहार्गल पधारे । शत्रु पक्ष का आदमी समझकर महावीर को राजा जितशत्रु के सामने उपस्थित किया गया। वहीं अस्थि गांव का नैमितज्ञ उत्पल बैठा था। उसने भगवान् को पहचान लिया। वह तत्काल उठा और उनके चरणों में वंदन करने के बाद राजा को भगवान् का परिचय दिया । भगवान् को ससम्मान विदा । किया। वहां से पुरिमताल, शकटमुख, उन्नाग होते हुए राजगृह में चातुर्मास संपन्न किया। वहां उन्होंने चातुर्मासिक तप किया।

Loading...

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242