Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Sumermal Muni
Publisher: Sumermal Muni

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Page 233
________________ २१४ / तीर्थंकर चरित्र ने एक मास के अनशन में निर्वाण को प्राप्त किया । सर्वज्ञता का छब्बीसवां वर्ष इस वर्ष का चातुर्मास नालन्दा में किया। इसी वर्ष गणधर अचलभ्राता व मेतार्य ने संथारा करके मोक्ष प्राप्त किया। सर्वज्ञता का सताइसवां वर्ष इस वर्ष का चातुर्मास मिथिला में हुआ । सर्वज्ञता का अट्ठाइसवां वर्ष इस वर्ष का चातुर्मास भी मिथिला में हुआ । सर्वज्ञता का उनतीसवां वर्ष मिथिला से विहार कर भगवान् राजगृह पधारे। वहीं चातुर्मास की स्थापना की। इस वर्ष अग्निभूति और वायुभूति गणधर ने अनशनपूर्वक निर्वाण को प्राप्त क़िया । सर्वज्ञता का तीसवां व अंतिम वर्ष चातुर्मास की समाप्ति के बाद भी भगवान् कुछ समय राजगृह में विराजे । उसी समय उनके गणधर अव्यक्त, मंडित, मौर्यपुत्र तथा अकंपित ने एक-एक मास के अनशन में निर्वाण को प्राप्त किया । भगवान् महावीर का पावा में अंतिम वर्षावास था। वहां राजा हस्तिपाल की रज्जुक सभा में चातुर्मास हेतु पधारे। अनेक भव्य जीव उद्बोधित हुए । राजा पुण्यपाल ने भगवान् के पास संयम स्वीकार किया । अंतिम प्रवचन भगवान् केवली पर्याय में उनतीस वर्ष छह महिना पन्द्रह दिन तक पूरे भूमंडल पर विचरते रहे। लाखों लोगों को भगवान् से मार्गदर्शन मिला, जीवनदर्शन मिला । समस्त आर्य जनपद में उन्होंने एक हलचल पैदा कर दी । अन्य दर्शनों पर भी उनके द्वारा निरूपित तत्व की छाप पड़ी, तभी पशुबलि व दासप्रथा चरमरा कर टूटने लगी। किसी ने प्रेम के नाम से, किसी ने करुणा के नाम से, किसी ने रहम के नाम से अपने-अपने धर्म में अहिंसा को स्थान देना शुरू कर दिया । सचमुच महावीर का जीवन आलोक पुंज था। उसके आलोक में अनेक प्राणियों ने तत्त्वज्ञान प्राप्त किया था । उन्होंने अपना अन्तिम वर्षावास लिच्छवी तथा मल्लि गणराज्यों के प्रमुखों की विशेष प्रार्थना पर पावा में बिताया। श्रद्धालुओं को पता था कि यह भगवान् का अंतिम वर्षावास है, अतः दर्शन, सेवा तथा प्रवचन का लाभ दूर-दूर के लोगों ने भी उठाया ।

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