Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Sumermal Muni
Publisher: Sumermal Muni

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Page 210
________________ भगवान् श्री महावीर/१९१ पुष्य बहुत प्रसन्न हुआ और वंदना करता हुआ चला गया। थूनाक सन्निवेश से प्रभु राजगृह पधारे । वहां तन्तुवायशाला में चातुर्मास बिताने लगे। मंखलिपुत्र युवा गोशालक भी चातुर्मास बिताने उसी शाला में ठहरा हुआ था। पहले मासखमण का पारणा भगवान् ने विजय सेठ के यहां किया। देवों ने पंच द्रव्य प्रकट किये । प्रभु के अतिशय प्रभाव को देखकर गोशालक आकर्षित हुआ और उनसे स्वयं को उनका शिष्य बनाने की प्रार्थना की। भगवान मौन रहे। उस चातुर्मास में भगवान् ने चार मासखमण किये । चातुर्मास परिसमाप्ति पर भगवान् ने उसको शिष्य रूप में स्वीकार कर लिया। इसके बाद छह वर्ष तक गोशालक प्रभु के साथ विचरता रहा। साधना का तीसरा वर्ष ___ चातुर्मास समाप्ति के बाद भगवान् कोल्लाग सन्निवेश पधारे। वहां से सुवर्णखल, नंदपारक आदि क्षेत्रों में होते हुए चंपा पधारे। यहीं तीसरा चातुर्मास व्यतीत किया। इस चातुर्मास में भगवान् ने दो-दो मास की तपस्या की। साधना का चौथा वर्ष चंपा से विहार कर कालाय सन्निवेश पधारे । वहां से पत्तकालय, कुमार सन्निवेश होते हुए चोराक सन्निवेश पहुंचे। वहां पर चोरों व डाकुओं का अत्यधिक भय था। इसलिए पहरेदार पूर्ण सतर्क थे। महावीर व गोशालक को देखकर उनके संशय जागा। पूछने पर महावीर मौन रहे। इस पर पहरेदारों ने क्रोधित होकर महावीर को पीटना शुरू कर दिया। उसी सन्निवेश में उत्पल निमित्तज्ञ की बहनें जयंती व सोमा रहती थी। उन्हें जब इस बात का पता चला तो तुरन्त आई, महावीर का सही परिचय दिया, तब पहरेदारों ने क्षमा मांगते हुए छोड़ दिया। उस वर्ष का चातुर्मास भगवान् ने पृष्ठ चंपा में किया। वहां विविध अभिग्रह युक्त चातुर्मासिक तप स्वीकार किया। साधना का पांचवां वर्ष पृष्ठ चंपा का चातुर्मास संपन्न कर प्रभु कयंगला व श्रावस्ती नगरी पधारे। साथ में गोशालक भी था। श्रावस्ती से विहार कर जंगल में हलिदुग नामक विशात वृक्ष के नीचे पधारे और ध्यानारूढ़ हो गये। पार्श्व में लगी भयंकर आग उस वृक्ष के नीचे भी आ गई जिससे भगवान् के पैर झुलस गये। वहां से भगवान् नांगला, आवत्ता व चौराक सन्निवेश होते हुए कलंबुआ पधारे । कलंबुआ के अधिकारी मेघ और कालहस्ती जमींदार होते हुए भी आस-पास के गांवों में डाका डाला करते थे। जब महावीर वहां पहुंचे तो कालहस्ती अपने साथियों के साथ डाका डालने जा रहा था । मार्ग में महावीर से जब भेंट हुई तो उनसे पूछा- "तुम कौन हो ?' महावीर ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। इस पर कालहस्ती ने उन्हें खूब पीटा, फिर

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