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भगवान् श्री वासुपूज्य/८९
अमर रहे । बालक बाप के नाम को अमर बनाने वाला होता है, अतः हमारा निवेदन है कि बालक का नाम 'वासुपूज्य' रखा जाए। आपका नाम वसुपूज्य है आपके पुत्र का नाम वासुपूज्य दिया जाए तो बालक के नाम से आपका नाम भी हमें स्मरण होता रहेगा। राजा के नाम जंच गया।
वासुपूज्य कुमार अपने बाल- साथियों के साथ क्रीड़ा करते हुए क्रमशः बड़े होने लगे। उनका अत्यन्त सुन्दर संस्थान (शरीर का आकार) व सर्वोत्तम संहनन युवावस्था में और भी अधिक निखर उठा और लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन गया। देखने वाले हैरान थे उनके रूप पर, शरीर के अद्भुत गठन पर । अनेक राजाओं ने राजा वसुपूज्य के पास दूत भेजकर आग्रह किया- 'आपके पुत्र के साथ मेरी राजकन्या की उपयुक्त जोड़ी है अतः इनके विवाह की स्वीकृति दें।"
राजा वसुपूज्य धार्मिक वृत्ति के होते हुए भी यह चाहते थे कि साधुत्व से पहले राजकुमार शादी कर ले। उसने वासुपूज्य कुमार की शादी अनेक राजकन्याओं के साथ आग्रहपूर्वक कर दी। साथ में यह भी चाहते थे कि कुंवर अब राज्य व्यवस्था का संचालन भी करे। राजा जानते थे कि कुंवर की इन दोनों के बारे में ही सर्वथा विरक्ति है। उन्होंने अपने प्यारे राजपुत्र को एक बार एकांत में बुलाकर कहावत्स! चौदह स्वप्नों के साथ जन्म लेने वाले अब तक जितने भी तीर्थंकर तथा चक्रवर्ती हुए हैं, वे सब विवाहित हुए हैं। उन्होंने न केवल विवाह किया, राज्य का संचालन भी किया। भगवान ऋषभ से लेकर श्रेयांस प्रभू तक के सारे तीर्थंकर राजा बने। फिर राज्य के प्रति अभी से तुम्हारी विरक्ति समझ में नहीं आती है। समय पर सारे काम होने चाहिए, विवाह के समय विवाह, राज्य संचालन के समय राज्य संचालन और साधना के समय साधना। क्यों ठीक है न?'
वासुपूज्य कुमार अब तक मौन थे, किंतु अब उन्हें बोलना पड़ा। बहुत विनय के साथ अपने सुदृढ़ विचारों को व्यक्त करते हुए कहा- 'पिताजी! राज्य संचालन में साम, दाम दंड, भेद का प्रयोग करना ही पड़ता है। उसमें कुछ न कुछ कर्म का बंध ही होता है। मैं ऐसे कर्मों से प्रतिबंधित नहीं हूं, अतः राज्य व्यवस्था का भार मैं नहीं लूंगा।'
राजा अपने पुत्र के उत्तर से स्वयं निरुत्तर थे। तत्त्वज्ञ होने के कारण वे गलत दलील दे नहीं सकते थे, अतः बोले- “पुत्र! फिर तुम स्वयं और दुनिया के कल्याण के लिए जैसा उचित समझो वैसा करो।' पिता से आज्ञा मिल गई । वासुपूज्य अपने महल में आए, इधर लोकांतिक देव भगवान् को प्रतिबोध देने की रस्म निभाने के लिए पहुंच गए। प्रतिबोध दिया, देवों ने मिल कर वर्षीदान की व्यवस्था की। भगवान् ने वर्षीदान दिया।