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भगवान् श्री महावीर/१७१
सोलहवां भव-मनुष्य (विश्वभूति)
राजगृह नगर में विश्वनंदी राजा राज्य करता था। उसका भाई विशाखभूति युवराज था। राजा विश्वनंदी के पुत्र का नाम विशाखनंदी था। युवराज विशाखभूति की रानी का नाम धारिणी था। इसकी कोख से नयसार का जीव पांचवें देवलोक से च्यवकर पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। इसका नाम दिया गया विश्वभूति । मरीचि के भव के बाद इस सोलहवें भव में पुनः राज परिवार में जन्म लिया।
विश्वभूति ने जब यौवन वय में प्रवेश किया तो उसका अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह कर दिया गया। एक दिन विश्वभूति अपनी रानियों एवं दासियों के साथ जल क्रीड़ा करने गया। कुछ क्षणों के बाद राजा विश्वनंदी का पुत्र विशाखनंदी भी अपनी रानियों के साथ घूमने के लिए उसी उद्यान में आया। जब उसे यह ज्ञात हुआ कि विश्वभूति पहले से ही उद्यान में जल क्रीड़ा कर रहा है तो उसे बड़ा क्षोभ हुआ। उसे बिना मन बाहर ही रहना पड़ा। विशाखनंदी की मां की दासियां भी पुष्प चुनने के लिए उद्यान में आई तो उन्हें भी निराश लौटना पड़ा
दासियों ने राजमहल आकर महारानी प्रियंगु को सारी जानकारी देते हुए कहा-'मौज-मजा तो विश्वभूति लूट रहा है जबकि हकदार आपका पुत्र विशाखनंदी है। इस पर रानी अत्यन्त कुपित हुई। इसे अपना अपमान समझा और कोप भवन में चली गयी। यह सब सुनकर महाराज चिंतातुर हो गए। राजा ने समझाने की बहुत कोशिश की पर रानी की हठ के सामने उन्हें झुकना पड़ा। विश्वभूति को दूर भेजने की युक्ति निकाली। छल-कपट से राजा ने युद्ध की रणभेरी बजवा दी-हमारा सामंत पुरुषसिंह विद्रोही हो गया है। वह प्रजा को नाना रूप से कष्ट दे रहा है। उसके साथ मैं युद्ध करने जा रहा हूं।'
यह समाचार जलक्रीड़ा करते विश्वभूति ने भी सुना। तत्काल वह राजमहल में आया और राजा से विनती की-आप जैसे सामर्थ्यवान को ऐसे सामंत के विरुद्ध युद्ध के लिए जाना शोभा नहीं देता। मैं स्वयं वहां जाने के लिए तत्पर हूं। आप मुझे आशीर्वाद दें। मैं अतिशीघ्र उसे आपके चरणों में उपस्थित करूं।' विश्वभूति की यह बात सुनकर राजा ने जाने की आज्ञा दे दी। सेना लेकर वह पुरुषसिंह का दमन करने चला।
विश्वभूति के चले जाने के बाद विशाखनंदी ने अपनी रानियों व दासियों के साथ उद्यान में प्रवेश किया और आनंदपूर्वक क्रीड़ा करने लगा।
विश्वभूते जब सामंत पुरुषसिंह की जागीर में पहुंचा तो वहां उसका भव्य स्वागत हुआ। उसका अवज्ञा या विद्रोह का समाचार बिल्कुल असत्य निकला। परस्पर बातचीत के बाद विश्वभूति लौटा । लौटते समय उद्यान रक्षक से पता चला