Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Sumermal Muni
Publisher: Sumermal Muni

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Page 193
________________ १७४/तीर्थंकर चरित्र पर उन क्षेत्रों की सुरक्षा हेतु बारी-बारी से एक-एक राजा की नियुक्ति कर दी। उस नियुक्ति के क्रम में महाराज प्रजापति का क्रम भी आया। वे जाने के लिए उद्यत हुये तो राजकुमार त्रिपृष्ठ ने आग्रहपूर्वक पिता को रोका । अपने भाई अचल के साथ उस क्षेत्र में पहुंच गये। त्रिपृष्ठ ने सोचा- 'लोगों में छाये भय के आतंक को मिटाने के लिए शेर को समाप्त कर दूं ।' दोनों भाइयों ने लोगों से सारी जानकारी प्राप्त की और शस्त्रास्त्र से सज्जित होकर शेर की गुफा की और बढ़े। वहां दोनों ने जोर से नाद किया। शेर इस आवाज से क्रुद्ध हो गया। वह गुफा से बाहर आया । उसको पैदल चलते देख त्रिपृष्ठ ने सोचा- यह पैदल है तो मैं रथ पर कैसे बैलूं। राजकुमार रथ से नीचे उतर कर चलने लगे। शेर के पास कोई हथियार नहीं तो मैं हथियार कैसे रखू । इस चिंतन के साथ अपने हथियार रथ में रख दिये। शेर भयंकर दहाड़ के साथ त्रिपृष्ठ पर झपटा, पर उसने विद्युत्वेग से लपक कर शेर के दोनों जबड़ों को पकड़कर पुराने बांस की तरह चीर डाला। शेर के मरने की बात सुनकर अश्वग्रीव भयाक्रांत हो उठा और उसे यह लगने लगा कि यह राजकुमार उसका काल है। कुछ सोच-विचार के बाद उसने प्रजापति को संदेश भेजा- आपके दोनों राजकुमारों ने जो वीरतापूर्ण कार्य किया है उसके लिए हम उन्हें पुरस्कृत करना चाहते है अतः उन्हें यहां भेजो।' संदेश के उत्तर में त्रिपृष्ठ ने उत्तर में कहा- 'जो राजा एक शेर को भी नहीं मार सका उस राजा के हाथ से हम किसी भी प्रकार का पुरस्कार नहीं लेंगे।' यह सुनकर प्रतिवासुदेव तिलमिला उठा और अपनी चतुरंगिनी सेना के साथ युद्ध भूमि में आ डटा। दोनों का परस्पर लोम हर्षक युद्ध हुआ । आखिर अश्वग्रीव को सुदर्शन चक्र से मारकर त्रिपृष्ठ पहले वासुदेव व अचल पहले बलदेव बने । इसी के साथ वे तीन खंड के एक छत्र स्वामी हो गये । पोतनपुर में एक बार ग्यारहवेंतीर्थंकर भगवान् श्रेयांस नाथ का पदार्पण हुआ। दोनों भाइयों ने भगवान् का प्रवचन सुना। इससे त्रिपृष्ठ को सम्यक्त्व प्राप्त हुई, किन्तु कुछ समय बाद वह प्रकाश समाप्त हो गया। दोनों ही भगवान् के भक्त बने रहे। ___ वासुदेव त्रिपृष्ठ एक क्रूर शासक थे। उन्हें अनुशासन का भंग कतई पसंद नहीं था। एक बार रात्रि में संगीत हो रहा था । चक्रवर्ती स्वयं पल्यंक पर शय्यापालक से यह कह कर सो गए कि मुझे नींद आने पर संगीत बन्द करवा देना। कुछ समय में उन्हें नींद आ गई, किन्तु संगीत-रसिक शय्यापालक ने संगीत बंद नहीं करवाया। त्रिपृष्ठ जब वापिस जागे, तो संगीत चलता हुआ देखकर वे एकदम क्रुद्ध हो उठे। पूछने पर शय्यापालक ने निवेदन किया- मेरा अपराध क्षमा करें, संगीत मधुर चल रहा था, अतः बंद नहीं किया गया। वासुदेव त्रिपृष्ठ ने क्रोधित होकर

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