Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Sumermal Muni
Publisher: Sumermal Muni

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Page 201
________________ १८२/तीर्थंकर चरित्र तब वृद्ध विप्र ने बालक वर्धमान से भी वे ही सवाल पूछे, वर्धमान ने सहज भाव से सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिये । उत्तर सुनकर कलाचार्यजी विस्मित हो उठे । सोचने लगे- 'इसे मैं क्या पढ़ाऊंगा? यह तो स्वयं दक्ष है।' उन्होंने तत्काल अपना आसन छोड़ा और नीचे आ बैठे । इन्द्र ने अपना रूप बदलकर वर्धमान का परिचय दिया। सभी प्रसन्न होकर वर्धमान को पुनः राजमहल में ले आए। महावीर के मुख से निकले हुए वचन ‘ऐन्द्र व्याकरण' के रूप में प्रसिद्ध हुए। विवाह वर्धमान के तारुण्य में प्रवेश करते ही सिद्धार्थ उनके विवाह की तैयारी करने लगे। वर्धमान को विवाह के लिए तैयार करने का काम उनके युवा मित्रों को सौंपा गया। एक दिन उनकी मित्रों से लम्बी बहस चल पड़ी। विवाह के पक्ष और विपक्ष में दलीलें दी जाने लगी। इसी बीच माता त्रिशला ने वर्धमान से आकर कहा'विवाह करने की तेरी इच्छा नहीं है, किन्तु मेरी है। ऐसा मानकर तुझे विवाह करना ही पड़ेगा। तुमने कभी मेरे मन को नहीं दुखाया, मुझे विश्वास है, अब भी नहीं दुखाएगा।' वर्धमान कुमार अपने भोगावली कर्मों की स्थिति देखकर माताजी की मनुहार पर मौन बने रहे। माताजी ने तुरन्त घोषणा कर दी कि वर्धमान का विवाह होगा। महाराज सिद्धार्थ ने बसंतपुर नगर के राजा समरवीर की पद्मावती रानी से उत्पन्न पुत्री यशोदा के संग परम हर्षोल्लास के साथ उनका विवाह कर दिया। अनासक्त भाव से भोग भोगते हुए वे समय बिताने लगे। यशोदा से एक पुत्री भी उत्पन्न हुई। उसका नाम प्रियदर्शना रखा गया। युवा होने पर उसका विवाह राजकुमार जमालि से हुआ। दिगम्बर परम्परा में वर्धमान के विवाह की बात नहीं है। वे भगवान् को बाल ब्रह्मचारी मानते हैं। दीक्षा ___ महावीर के पिता सिद्धार्थ व माता त्रिशला भगवान् पार्श्व की परंपरा के श्रमणोपासक थे। महावीर प्रारंभ से विरक्त थे, पर माता-पिता के अत्यंत स्नेह के कारण दीक्षा की बात को प्रकट नहीं कर रहे थे। उन्होंने गर्भ में ही यह निर्णय कर लिया था कि माता-पिता के रहते वे दीक्षा नहीं लेंगे। महावीर अठाइस वर्ष के हुए। माता-पिता ने अनशन स्वीकार कर समाधि मरण प्राप्त किया और वे बारहवें अच्युत देवलोक में महर्धिक देव बने । माता-पिता के स्वर्गवास के बाद महावीर ने अपने बड़े भ्राता नन्दिवर्धन से कहा- 'भाईजी ! अब मुझे दीक्षा की आज्ञा दीजिये।'

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