Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Sumermal Muni
Publisher: Sumermal Muni

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Page 207
________________ १८८ / तीर्थंकर चरित्र ८. उदीयमान सूर्य की किरणों का प्रसार । ९. अपनी आंतों से मानुषोत्तर पर्वत को लपेटना । १०. मेरू पर्वत पर आरोहण करना । गांव वालों ने यह अनुमान लगा लिया कि यक्ष ने महावीर को मार डाला । उसी अस्थिग्राम में उत्पल नैमितज्ञ रहता था। किसी समय वह भगवान् पार्श्व की परंपरा का साधु था। बाद में गृहस्थ होकर निमित्त ज्योतिष से अपनी आजीविका चलाता था । उत्पल, इन्द्रशर्मा पुजारी व अन्य गांववालों के साथ यक्ष मंदिर में पहुंचा। वहां पर भगवान् को ध्यानावस्थित अविचल खड़े देखा तो सबके आश्चर्य एवं आनन्द की सीमा नहीं रही। रात में देखे हुए भगवान् के स्वप्नों का उत्पल क्रमशः फल बताने लगा ९. आप मोहनीय कर्म का अंत करेंगे। २. आपको शुक्ल ध्यान प्राप्त होगा । ३. आप द्वादशांगी रूप श्रुत का उपदेश देंगे । ४. इसका फल नैमितज्ञ बता नहीं पाया । ५. चतुर्विघ संघ की स्थापना करेंगे । देवता आपकी सेवा करेंगे । ६. ७. आप संसार समुद्र को पार करेंगे। ८. आपको केवल ज्ञान प्राप्त होगा । ९. आप द्वारा प्रतिपादित दर्शन व आपका यश दिग्दिगंत तक फैलेगा । १०. समवसरण में व्यापक धर्म का प्रतिपादन करेंगे । चौथे स्वप्न का फल नैमितज्ञ नहीं जान सका। इसका फल स्वयं प्रभु ने बताया'मैं साधु और गृहस्थ इन दो धर्मों की प्ररूपणा करूंगा।' अस्थिग्राम के इस पावस- प्रवास में फिर कोई उपसर्ग नहीं हुआ। भगवान ने पन्द्रह-पन्द्रह उपवास की आठ तपस्याएं कीं। साधना का दूसरा वर्ष अस्थिग्राम पावस के पश्चात् महावीर मोराक सन्निवेश पधारे। वहां अच्छंदक नामक एक अन्यतीर्थी पाखंडी रहता था। जो ज्योतिष, तंत्र-मंत्रादि में अपनी आजीविका चलाता था । उसका सारे गांव में प्रभाव था । उसके प्रभाव को समाप्त करने के लिए तथा प्रभु का नाम फैलाने के लिए सिद्धार्थ नामक व्यंतर देव ने गांव वालों को चमत्कार दिखाया। इससे अच्छंदक का प्रभाव निष्प्रभ हो गया । अपनी घटती महत्ता को देख वह महावीर के पास आया और करुण स्वर में प्रार्थना करने लगा- 'भगवन् ! आप अन्यत्र चले जायें क्योंकि आपके यहां रहने से मेरी आजीविका नष्ट हो जायेगी और मैं दुःखी हो जाऊगां "। ऐसी परिस्थिति में भगवान् ने वहां

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