Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Sumermal Muni
Publisher: Sumermal Muni

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ भगवान् श्री महावीर/१८५ ब्राह्मण के घर परमान्न (खीर) से बेले का प्रथम पारणा किया। दान की महिमा गाते हुए देवों ने पंच द्रव्य प्रकट किये। उपसर्ग व कष्ट प्रधान साधना भगवान् महावीर के छद्मस्थ काल की साधना उपसर्ग, कष्ट : घटना प्रधान रही। प्राचीन आचार्यों के अभिमत में तेईस तीर्थंकर के कर्म दलिक एक तरफ और भगवान् महावीर के कर्म एक तरफ। इसमें भी महावीर के कर्म अधि क थे। इस कारण महावीर की साधना बड़ी कष्ट पूर्ण व प्रखर रही। आचारांग सूत्र व कल्प सूत्र में भगवान् की साधना का विस्तृत वर्णन मिलता है कि दीक्षित होने के बाद महावीर ने देव दूष्य वस्त्र के अतिरिक्त कुछ नहीं रखा। लगभग तेरह मास तक वस्त्र भगवान् के कंधे पर रहा। उसके बाद उस तस्त्र के गिर जाने से वे पूर्ण रूप से अचेल हो गये। दीक्षा के समय उनके शरीर पर जो सुगंधित विलेपन किया गया था, उससे आकृष्ट होकर भ्रमर व सुगंध प्रेमी कीट भगवान् के शरीर पर चार माह तक मंडराते रहे, मांस को नोचते रहे, रक्त पीते रहे, पर महावीर ने उफ तक नहीं किया। उस सुगंध से प्रभावित होकर मनचले युवक भगवान् के पास आते और निवेदन करते आपके शरीर में अत्यधिक सुगंध आ रही है। हमें भी कोई उपाय बतायें व चूर्ण दें जिससे हमारे शरीर में सुवास फैले। मौन रहने के कारण वे युवक उन्हें छेड़ते, कष्ट देते और चले जाते । आपके रूप-सौन्दर्य, सुगठित व बलिष्ठ शरीर को देखकर स्वेच्छा विहारिणी युवतियां अपनी काम पीपासा शांत करने के लिए आती। वे अपने हाव-भाव प्रदर्शित करती, कटाक्ष करती, विविध नृत्य व भावों से आकर्षित करने का प्रयास करती, पर महावीर तो मेरू पर्वत की भांति अडोल रहते ! उन पर इनका कोई असर नहीं होता ! आखिर हार कर उन्हें कष्ट देती हुई चली जाती। साधना काल में वे कभी निर्जन झोंपडी, कभी प्याऊ या कुटिया, कभी खंडहर या धर्मशाला में कभी यक्ष मंदिर व श्मसान में निवास करते । शीत काल में भयंकर ठंड के समय दूसरे साधक सर्दी से बचने के लिए गर्म स्थानों में रहते, कपड़े ओढ़ते, पर महावीर उस सर्दी में भी खुले बदन खुले स्थान में खड़े रहते और सर्दी से बचाव की इच्छा तक भी नहीं करते । अपनी बाहुओं को नहीं समेटते । खुले शरीर होने से सर्दी गर्मी के अलावा दंश-मशक (मच्छर) का भी पूरा परीषह रहता। कभी सर्प आदि विषैले व काक, गीध आदि तीक्ष्ण चोंच वाले पक्षियों के प्रहार भी सहन करते। कभी-कभी लोग उन्हें चोर या जासूस समझ कर पीटते, अपमानित करते। भयंकर दैवी उपसर्गों को भी समभाव से सहते। साधनाकाल में महावीर ने प्रायः नींद नहीं ली। जब उन्हें निद्रा सताती वे खड़े हो जाते या कुछ समय चंक्रमण कर नींद को भगा देते थे। विहार के प्रसंग

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242