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१६४/तीर्थंकर चरित्र
हजारों लोग सर्वज्ञ भगवान् के दर्शनार्थ आ पहुंचे। प्रभु ने प्रवचन दिया। उनके प्रथम प्रवचन में ही तीर्थ की स्थापना हो गई । अनेक व्यक्तियों ने आगार व अणगार धर्म को स्वीकार किया। चातुर्याम धर्म ___भगवान् पार्श्वनाथ तो इसके अंतिम निरूपक थे। इसके पश्चात् भगवान् महावीर ने पांच महाव्रत धर्म की व्याख्या दी थी, अतः पार्श्वनाथ का धर्म 'चातुर्याम-धर्म' के नाम से प्रसिद्ध हो गया । चौबीस तीर्थंकरों में प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर पांच महाव्रत रूप संयम धर्म का प्रवर्तन करते हैं। शेष बावीस तीर्थंकर चातुर्याम धर्म के प्ररूपक होते हैं। 'चातुर्याम' और 'पंचयाम' भी शब्द-भेद ही हैं। साधना दोनों की समान है। चातुर्याम धर्म में ब्रह्मचर्य को पृथक् याम (महाव्रत) नहीं माना गया, किन्तु ब्रह्मचर्य को अपरिग्रह के अन्तर्गत ले लिया गया। स्त्री द्विपद परिग्रह में मान्य थी। ब्रह्मचारी स्त्री का त्याग करता है, अतः अपरिग्रह में ब्रह्मचर्य सहज ही आ जाता है। चातुर्याम धर्म का विकास ही पंच महाव्रत धर्म हैं। अप्रतिहत प्रभाव
भगवान् पार्श्व का प्रभाव मिश्र, ईरान, साइबेरिया, अफगानिस्तान आदि सुदूर देशों में भी गहरा फैला हुआ था। तयुगीन राजा तथा लोग पार्श्व के धर्म की उपासना विशेष रूप से करते । प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनसांग ने जब उन प्रदेशों की यात्रा की, तो वहां उसने अनेक निर्ग्रन्थ मुनियों को देखा था। महात्मा बुद्ध का काका स्वयं भगवान् पार्श्वनाथ का श्रमणोपासक था। दक्षिण में भी पार्श्व के अनुयायी पर्याप्त मात्रा में थे। ___करकंडु आदि चार प्रत्येकबुद्ध राजा भी भगवान् पार्श्व के शिष्य बने थे। कई इतिहासकार तो यह भी मानते हैं कि महात्मा बुद्ध ने छ: वर्ष तक भगवान् पार्श्व के धर्म शासन में साधना की थी। उस समय के सभी धर्म-सम्प्रदायों पर पार्श्व की साधना-पद्धति का विशेष प्रभाव था ! उनके शासनकाल में आर्य शुभदत्त, आर्य हरिदत्त, आर्य समुद्रसूरि, आर्य केशी श्रमण जैसे प्रतिभाशाली व महाप्रभावक आचार्य हुए। निर्वाण
विभिन्न प्रदेशों की पदयात्रा करके भगवान् ने लाखों लोगों को मार्गदर्शन दिया। अंत में वाराणसी से आमलकल्पा आदि विभिन्न नगरों में होते हुए प्रभु सम्मेद शिखर पर पधारे । तेतीस चरम शरीरी मुनियों के साथ अंतिम अनशन किया। एक मास के अनशन में चार अघाति कर्मों को क्षर, कर निर्वाण को प्राप्त किया। देवों, इन्द्रों, मनुष्यों एवं राजाओं ने मिलकर भगवान् के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया।