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१५८/ तीर्थंकर चरित्र
के पूछने पर गाल्व ऋषि ने कहा था- पद्मा भाग्यशालिनी है, आज स्वर्णबाहु नामक राजकुमार आयेगा और वही इनका पति होगा। स्वर्णबाहु साधारण राजकुमार नहीं है, कुछ समय में चक्रवर्ती सम्राट् बनेगा ।'
राजकुमार को कन्या का परिचय देती हुई युवती बोली- 'यह राजा खेचरेन्द्र की पुत्री पद्मा है, हम सब इनकी सहेलियां हैं। राजा के शरीरांत के पश्चात् पद्मा की सुरक्षा की दृष्टि से महारानी आश्रम में रहती हैं। वह यह सब बता ही रही थी कि इतने में गाल्व ऋषि और रानी रत्नावली वहीं आ गए। उन्होंने आग्रहपूर्वक कुंवर के साथ राजकुमारी पद्मा का गंधर्व विवाह कर दिया ।
पीछे से सेना के सैनिक कुमार को खोजते खोजते वहां आ पहुंचे। कुमार को वहां पत्नी सहित देखकर वे विस्मित हो उठे ।
स्वर्णबाहु अपनी पत्नी पद्मा को लेकर अपने नगर पहुंचा। राजा कुलिसबाहु भी पुत्रवधू को देखकर अत्यधिक प्रसन्न हुए । विवाह के उत्सव के साथ उन्होंने पुत्र का राज्याभिषेक भी कर दिया। राजा स्वयं साधना पथ पर अग्रसर हो गये ।
कालान्तर में स्वर्णबाहु की आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। उससे सभी देश विजित कर वे सार्वभौम चक्रवर्ती बने । सुदीर्घकाल तक राज्य का संचालन करते रहे। एकदा वे तीर्थंकर जगन्नाथ के समवसरण में दर्शनार्थ गये । समवसरण में प्रवेश करते ही उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हो गया। अपना पूर्वभव देखते ही उन्होंने विरक्त होकर पुत्र को राज्य सौंपा तथा स्वयं जिन चरणों में दीक्षित होकर साधनामय जीवन बिताने लगे ।
उग्र तपस्या तथा ध्यान साधना से उन्होंने महान् कर्म-निर्जरा की । तीर्थंकर गोत्र का बन्ध किया। एक बार वे जंगल में कायोत्सर्ग कर रहे थे । अनेक योनियों में भटकता हुआ कुरंग भील का जीव सिंह बना । मुनि को देखते ही क्रुद्ध होकर वह उन पर झपटा। मुनि ने अपना अन्त समय निकट देखकर अनशन कर लिया तथा समाधिपूर्वक मरण प्राप्त कर महाप्रभ विमान में सर्वाधिक ऋद्धि वाले देव बने ।
जन्म
परम सुखमय देवायु भोगकर वे इसी भरत क्षेत्र की वाराणसी के नरेश अश्वसेन की महारानी वामादेवी की पवित्र कुक्षि में अवतरित हुए। चौदह महास्वप्नों से सभी जान गये कि हमारे राज्य में तीर्थंकर पैदा होंगे। सर्वत्र हर्ष का वातावरण छा गया। सब प्रसव की प्रतीक्षा करने लगे ।
गर्भकाल पूरा होने पर पौष कृष्णा दशमी की मध्य रात्रि में भगवान् का सुखद प्रसव हुआ। देवेन्द्रों के उत्सव के बाद राजा अश्वसेन ने राज्य भर में जन्मोत्सव का विशेष आयोजन किया । पुत्र जन्म की खुशी का लाभ राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को मिला। उत्सव के दिनों में कर लगान आदि सर्वथा समाप्त कर दिये गये ।