________________
१५०/तीर्थंकर चरित्र
दीपायन का निदान ___ भवितव्यता मिटाई मिट नहीं सकती। मदिरा के भंडार समाप्त कर दिये गये थे। द्वारिका में पूर्णतया मद्य निषेध लागू हो गया था। पूरी जागरूकता बरतने के बावजूद भी जो निमित्त मिलना था वह तो मिला ही । पावस ऋतु में जोरों की वर्षा हुई। आस-पास के ताल-तलैया सब भर गये। शाम्ब आदि अनेक यादव कुमार भ्रमण के लिए निकले । घूमते-घूमते वे दूर जंगल में चले गये । प्यास लगी, वहीं पर गड्ढों में एकत्रित पानी से प्यास बुझाई । उस पानी में गिराई हुई शराब बहकर आई हुई थी। प्यास तो बुझ गई किंतु उन्मत्तता आ गई। सभी मदहोश हो गये। संयोगवश थोड़ी दूरी पर उन्हें दीपायन ऋषि मिल गये । नशे में उन्मत्त यादव कुमारों ने ऋषि को खूब सताया। ऋषि लंबे समय तक शांत रहे, किंतु अन्त में युवकों की यातना से वे उत्तेजित हो उठे। सोचने लगे- 'ऐसे युवक ही अब द्वारिका में रहे हैं, बाकी तो सब दीक्षित हो चुके हैं। इनको तो भस्म करना ही ठीक है।' ऋषि ने गुस्से में चिल्लाकर कहा-'तुम अभी सताते हो, मैं तुम्हारा बदला पूरी द्वारिका को जलाकर लूंगा।' ___ यह सुनते ही युवकों को होश आया। उनका नशा झटके के साथ उतर गया। सब पश्चात्ताप करने लगे। यादव कुमारों की उद्दण्डता का पता श्री कृष्ण को लगा। श्रीकृष्ण और बलराम जी ने आकर ऋषि का खूब अनुनय-विनय किया। अत्यन्त विनय करने के बाद भी दीपायन ऋषि ने सिर्फ इतना ही कहा-'तुम दोनों भाइयों को छोडूंगा। शेष द्वारिका में कुछ नहीं बचेगा। सब कुछ स्वाहा करके ही मैं शांत बनूंगा।' स्पष्ट उत्तर मिलने पर श्रीकृष्ण और बलरामजी दोनों निराश होकर वापस आ गये। तीर्थंकरत्व की भविष्यवाणी ___ भगवान् नेमिनाथ पुनः द्वारिका पधारे । कृष्ण वासुदेव ने दर्शन किये, किन्तु आज वे खिन्नमना थे। प्रभु से कहने लगे-'लोग भारी संख्या में संयम ले रहे हैं, क्या मेरे कोई अन्तराय है?' भगवान् ने कहा-'कृष्णजी ! वासुदेव के साथ कुछ ऐसी नियति होती है कि वे साधु नहीं बनते, किन्तु तुम्हें विषाद नहीं करना चाहिये। अगली उत्सर्पिणी में आप 'अमम' नाम के बारहवें तीर्थंकर बनोगे। ये बलरामजी आपके धर्म शासन में मुक्त बनेंगे। यह सुनते ही सर्वत्र हर्ष छा गया।
भगवान् विहार कर गए । लोग धर्म की विशिष्ट उपासना करने लगे। उपवास, आयंबिल विशेष रूप से होने लगे। इधर दीपायन आयुष्य पूर्ण कर अग्निकुमार देव के रूप में उत्पन्न हुआ। उन्होंने अवधि दर्शन से देखा । पूर्व वैर जागृत हुआ । तत्काल देव द्वारिका दहन के लिए पृथ्वी पर आ गया। किन्तु घर-घर में धर्म की समुचित उपासना देखकर वह द्वारिका को जला नहीं सका। वर्षों तक वह द्वारिका के