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भगवान् श्री पार्श्वनाथ
प्रथम व द्वितीय भव
भगवान् पार्श्वनाथ के दस भवों का विवेचन मिलता है। पोतनपुर नगर के नरेश अरविन्द थे। उनकी रानी रतिसुंदरी थी। नरेश के पुरोहित का नाम विश्वभूति था। उसकी पत्नी अनुद्धरा थी। पुरोहित के दो पुत्र थे- कमठ और मरुभूति। कमठ कुटिल प्रकृति का था जबकि मरुभूति भद्र प्रकृति का । यह मरुभूति पार्श्व का जीव था। कमठ व मरुभूति का विवाह क्रमशः वरूणा व वसुन्धरा के साथ हुआ। __ कमठ को परिवार का भार सौंप कर पुरोहित विश्वभूति ने दीक्षा ले ली। मरुभूति हरिश्चन्द्र आचार्य के पास श्रावक बन गया। मरुभूति की पत्नी वसुन्धरा अत्यन्त रूपवती थी। कमठ ने उसे चाल में फंसा कर अपनी प्रेमिका बना लिया। एक दिन दोनों को व्यभिचार में रत देखकर मरुभूति ने राजा से शिकायत की। राजा ने कमठ को बुलाया और उसे गधे पर बिठाकर शहर में घुमाया और नगर से निष्कासित कर दिया।
कमठ क्रोधित होकर तापस बन गया। कालांतर में उसकी उग्र तपस्वी के रूप में प्रसिद्धि हुई। मरुभूति क्षमा मांगने के लिए कमठ के पास आश्रम में आया। मरुभूति को देखते ही कमठ ने क्रुद्ध होकर एक बड़ी शिला उठाकर उसके माथे पर दे मारी, जिससे वह वहीं पर ढेर हो गया। वह मरकर विन्ध्यगिरि में हथिनियों का यूथपति बना । कमठ की पत्नी वरुणा पति के बुरे कामों से शोक ग्रस्त होकर मरी और वह उसी अटवी में यूथपति की प्रिय हथिनी बनी। तृतीय भव
पोतनपुर नरेश अरविन्द ने अपने पुत्र महेन्द्र को राज्य भार देकर दीक्षा स्वीकार की। विचरते-विचरते मुनि अरविंद विन्ध्य अटवी में पहुंचे और कायोत्सर्ग में लीन हो गये। उस समय वह हाथी अपनी हथिनियों के साथ सरोवर में जल क्रीड़ा करके निकला । अजनबी व्यक्ति को देखकर हाथी मुनि पर झपटा पर सहसा उनके पास आकर रुक गया। मुनि के प्रखर आभामंडल के प्रभाव से उसकी क्रूरता समाप्त हो गई और वह मुनि को एकटक देखने लगा।