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भगवान् श्री सुपार्श्वनाथ/६९
विवाह और राज्य ____ पांच धाय माताओं से पुत्र का लालन- पालन होने लगा। निर्विघ्नता से वृद्धि पाते हुए उन्होंने क्रमशः बचपन व किशोरावस्था पार की। तब राजा प्रतिष्ठसेन ने समवयस्क राजकन्याओं से सुपार्श्वकुमार की शादी की । अवसरज्ञ राजा ने निवृत्त होने का क्षण आया जानकर पुत्र को राज्य सौंपा तथा स्वयं इंद्रियगुप्त अणगार के चरणों में संयमी बन कर साधनारत बन गये।
सुपार्श्व अब राजा बन चुके थे। धाय माता की भांति वे राज्य का पालन अंतरंग विरक्ति के साथ करने लगे। उनके राज्य में अपराध प्रायः समाप्त हो गये थे। लोग आपसी विग्रह भूल चुके थे । व्यक्तिगत स्वार्थ समष्टिगत बन चुका था। पडौसी कितना सुखी है, इस पर स्वयं की तृप्ति निर्भर थी। प्रजा के दुःख दर्द की बात राजा तक पहुंचने से पहले ही लोग मिलकर उसे मिटा देते थे। राजा तक तो उसके समाधान की बात ही प्रायः पहुंचती थी। राजा को भी अपने राज्य संचालन पर सात्विक तोष था । प्रजा में परस्पर एकात्मकता के प्राबल्य से समूचा राज्य परिवार के रूप में रह रहा था।
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