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भगवान् श्री सुविधिनाथ / ७७
बन गई थी। मुझे स्वयं आश्चर्य होता है कि जब भी महल में कोई चर्चा होती कि अमुक कार्य कैसे किया जाये, अमुक वस्तु कैसे बनाई जाये, महारानी कैसे तत्काल समाधान दे देती थी। उसकी बताई विधि से वह कार्य सहज ही निष्पन्न हो जाता था। मेरी दृष्टि में यह गर्भ का ही प्रभाव था । अतः इसका नाम सुविधि कुमार रखा जाना उपयुक्त होगा। दूसरी एक घटना और है- इसके गर्भकाल में महारानी को पुष्पों का दोहद (इच्छा) उत्पन्न हुआ था । अतः इसका दूसरा नाम पुष्पदंत भी रखा जा सकता है।' सबने दोनों नामों से ही बालक को पुकारा ।
बालक सुविधि कुमार जब युवक बने, तब माता-पिता ने सुसंस्कारित राजकन्याओं से उनका विवाह किया। गंधर्वदेवों की भांति पंचेन्द्रिय सुख भोगते हुए वे भोगावली कर्मों के हल्के होने की प्रतीक्षा करने लगे। राजा सुग्रीव ने सुविधि कुमार को राज्य- पद देकर निवृत्ति पथ को ग्रहण किया । सुविधि कुमार राजा बने तथा व्यवस्था संचालन का गुरुतर दायित्व निर्लिप्त भाव से निभाने लगे। उनके राज्य में सर्वत्र शांति का साम्राज्य था । लोग परम सुखी थे ।
दीक्षा
भोगावली कर्मों के भोगे जाने के बाद भगवान् दीक्षा के लिए तत्पर हुए। लोकांतिक देवों के आगमन के बाद भगवान् ने वर्षीदान दिया । एक हजार विरक्त व्यक्तियों के साथ भगवान् ने बेले की तपस्या में दीक्षा ग्रहण की। दूसरे दिन राजा पुष्पक के घर पर खीर से पारणा किया।
छद्मस्थ काल में भगवान् सुविधि एकांत और मौन साधना से अपने को साधने लगे । विचरते- विचरते वे पुनः काकंदी नगरी में पधारे। वहीं पर शाल वृक्ष के नीचे क्षपक श्रेणी ली, घातिक कर्मों का क्षय किया और सर्वज्ञता प्राप्त की । उस दिन भी उनके बेले की तपस्या थी । देवों ने ज्ञानोत्सव किया। भगवान् ने प्रवचन किया। प्रथम देशना में चतुर्विध संघ की स्थापना हो गई ।
निर्वाण
बहुत वर्षों तक केवली पर्याय (अवस्था) में भगवान् सुविधिनाथ आर्य जनपद में विचरते रहे । अन्त में एक हजार केवली संतों के साथ सम्मेद शिखर पर आरूढ़ हुए, अनशन किया तथा भाद्रपद कृष्णा नवमी के दिन सिद्धत्व प्राप्त किया । तीर्थ-विच्छेद
भगवान् ऋषभ से लेकर सुविधिनाथ प्रभु तक जैन काल गणना के अनुसार बहुत समय बीत चुका था। फिर भी कभी तीर्थ प्रवचन विच्छेद नहीं हुआ । साधु-साध्वियां, श्रावक-श्राविकाओं तथा प्रवचन का अभाव नहीं हुआ । यद्यपि कम अधिक होते रहे, किंतु सर्वथा अभाव कभी नहीं हुआ था । काल का दोष कहिए या नियति का चक्र समझिये, भगवान् सुविधि के निर्माण के कुछ समय बाद तीर्थ