________________
४६/तीर्थंकर चरित्र
सुखपालिका में बिठाकर भगवान् को सहस्राम्र उद्यान में लाया गया। वहां भगवान् एक हजार अन्य राजा, राजकुमार व प्रजाजनों के साथ दीक्षित हुए। दीक्षा लेते समय भगवान् के बेले का तप था। दूसरे दिन अयोध्या नरेश ब्रह्मदत्त के यहां प्रथम पारणा हुआ।
दीक्षित होने के बाद भगवान् ने बारह वर्ष तक कठोर तपस्या व उत्कृष्ट साधना की। ग्रामानुग्राम विचरते हुए प्रभु पुनः अयोध्या पधारे। पौष शुक्ला एकादशी के दिन प्रभु ध्यानावस्था में क्षपक श्रेणी चढ़े । घातिक कर्मों को क्षय करके सर्वज्ञता प्राप्त की। देवों ने उत्सव किया, प्रभु ने तीर्थ-स्थापना की। प्रथम देशना में ही बड़ी संख्या में साधु- साध्वी, श्रावक और श्राविकायें हो गये।
_tta
सगर को वैराग्य
भगवान् चिरकाल तक धर्म-चक्र का प्रवर्तन करते रहे। लाखों लोग अध्यात्म के आलोक से आलोकित हुए। उनके शासनकाल में ही उनके भाई सगर चक्रवर्ती बने और एक निमित्त के साथ सब कुछ छोड़लर वे आत्मस्थ बन गए। चक्रवर्ती सगर के साठ हजार पुत्र थे। अपने पिता के वे परम- भक्त थे। एक बार उन्होंने